सामने पार्थिव न, पर आदर्श की प्रतिमा खड़ी है। आप तो थे ही बड़े, यह और भी उससे बड़ी है॥1॥
पार्थिक से आपने, अपनत्व का अमृत पिलाया। और जब भटक, पकड़ कर हाथ, सत्पथ पर चलाया॥ आपके आदर्श, उससे अधिक संबल दे रहे है। इस तरह से आप, हर क्षण साथ में ही रह रहे है॥ आपसे गहरे जुड़े हम, सूक्ष्म उसकी ही कड़ी है। आज तो थे ही बड़े यह और भी उससे बड़ी है॥2॥
पार्थिव से थी, वही आदर्श से अनुरक्ति देना। उस विरह को भुलाने को, ओर दूनी शक्ति देना॥ समर्पित जीवन जिये हम, आपके आदर्श के प्रति। आपको पीड़ा न पहुंचाएं, हमारी कोई भी कृति॥ आप “बिछुड़ेंगे नहीं” इस वचन पर आँखें गड़ी है। सामने पार्थिव पर आदर्श की प्रतिमा खड़ी है॥3॥
आप तब भी व्यक्ति कब थे, शक्ति की प्रतिमूर्ति ही थे। पार्थिव द्वारा हमारी लालसा की पूर्ति ही थे॥ चाह रहती थी हृदय में, पार्थिव तक दौड़ने की। और अपनी वेदना की, अश्रु धारा छोड़ने की॥ विश्वव्यापी शक्ति का सामीप्य, अब तो हर घड़ी है। आप तो थे ही बड़े, यह और भी उससे बड़ी है॥4॥
प्राणपण से लोकमंगल पंथ, पर हम चल पड़ेंगे। ओ प्रकाश स्तम्भ! तम से आखिरी दम तक लड़ेंगे॥ साँस का हर सुमन, श्रद्धांजलि लिए शिव पर चढ़ेगा। कारवाँ अब तक आपके, आदर्श को लेकर बढ़ेगा॥ क्यों न हम आहुति बनेंगे, जब जरूरत ही पड़ी है। सामने पार्थिव न, पर आदर्श की प्रतिमा खड़ी है॥5॥
नये युग की आरती के थाल के दीपक बनेंगे। और हम ‘उज्ज्वल-भविष्य’ के प्रखर उद्घोषक बनेंगे॥ हम जगायेंगे सतत्, सोया हुआ देवत्व अपना। पूर्ण होगा, आपका स्वर्ग अवतरण का सुगढ़ सपना॥ प्राण, मन में आपकी ही प्रेरणा की धुन चढ़ी है। आप तो थे ही बड़े, यह और भी उससे बड़ी है॥6॥