राष्ट्र देव की पूजा करना ही सच्ची देवपूजा है। इसके लिए स्नेह, सेवा, संगठन, सहयोग और संघर्ष के पंचोपचार अर्पण करने पड़ते है। पुजारी को सत्यनिष्ठ और साहसी बनना पड़ता है।
हर मनुष्य अपने स्तर की दुनिया अपने हाथों आप रचता है।
मनुष्य उस धातु का बना है जिसकी संकल्प भरी साहसिकता के आगे कभी भी कोई अवरोध टिक नहीं सका है और न कभी टिक ही सकेगा।