किस्मत के सम्पादक का पत्र 14-16 वर्ष के बालक श्रीराम के पास आया था। इतने छोटे बच्चे के नाम किसी सम्पादक का पत्र देखकर गाँव का एक युवक उत्सुकतावश पास आ गया। चिट्ठी खोलने पर पता चला कि इसका सम्बन्ध उनकी हाल में ही छपी एक कविता से है। सम्पादक ने संवेदनशील हो लिखा था, तुम्हारी कविता किसी बच्चे के हाथ की लिखी नहीं लगती। निश्चित रूप से तुम में संवेदनाओं का स्रोत है, जो आगे चलकर निर्झर महान बनेगा और गुरुदेव पढ़कर दंग रह गये।
बदलते समय के साथ इस टिप्पणी की सार्थकता हर्बर्ट स्पेन्सर की उस टिप्पणी की तरह सबने परखी जो उन्होंने बालक विवेकानन्द के उस लेख पर लिखी थी, शीघ्र ही विश्व तुम्हें एक विचारक के रूप में जानेगा। संवेदनाओं के इस निर्झर ने कितने सूखते-मुरझाते जीवनों को हरा भरा किया? यह गणना क्या आकलन शक्ति के बूते की बात है?