ईश्वरचन्द्र विद्यासागर (Kahani)

August 1990

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

सन् 1966 में एक कार्यक्रम में गुरुदेव प्रवास पर थे। कार्यक्रम के आयोजकों ने उन्हें अपने घर ठहराया। उनके आने की खबर सुन कर आस पास के बहुत लोग आ जुटे थे। इसी सिलसिले में पड़ोस की एक नव विवाहिता लड़की आयी। वेश विन्यास की तड़क भड़क के अतिरिक्त उसने ढेरों गहने-जेवर पहन रखे थे। पर परिवार की बातें, व्यक्तिगत कष्ट कठिनाई पूछने के बाद स्नेह भरे स्वर में बोले, अरे, तूने इतने गहने क्यों लाद रखे हैं। लड़की तो मौन रही पर पास खड़ी एक प्रौढ़ महिला बोल पड़ी गहने पहनने से लड़कियों का सौंदर्य बढ़ जाता हैं।

सुनकर वह हँसते हुए तनिक आश्चर्य से बोले अच्छा! पर भाई मैं तो उसी को सुन्दर कहता हूँ जो सुन्दर काम करता है। फिर थोड़ा गम्भीर होकर बोले-गहने नारी जाति की हथकड़ी बेड़ियाँ है। इस तरह अपने को भ्रमित रखने के कारण कितना त्रास सहा है उसने। कहते कहते उनके हृदय की कोमलता सजीव हो उठी। नारी के प्रति उनकी हम जीवन्त सम्वेदना में उपस्थित जनों को ईश्वरचन्द्र विद्यासागर के कर्तृत्व का सादृश्य अनुभव हुआ।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118