कायर पग-पग पर आत्म प्रताड़ना की मार से मरते है जबकि साहसी को केवल एक बार ही मरना पड़ता है।
सतयुग आयेगा, पृथ्वी का भार हलका होगा
मिष्ठान्न का नामोच्चारण करने भर से न मुँह मीठा होता है और न पेट भरता है। ईश्वर की रट लगाने और धर्म की दुहाई देने से भी हाथ कुछ नहीं आता।
प्रत्येक युग में दूसरा युग वर्तता है, यह प्रकृति का नियम है। सतयुग में भी कलियुग का प्रभाव था, इसी प्रकार अब कलियुग में भी सतयुग का प्रभाव परिलक्षित होने लगा है। सृष्टि की वर्तमान व्यवस्था ऐसी हो गई है कि यदि अब सतयुग न आवे तो यह सृष्टि अधिक समय तक स्थिर ही नहीं रह सकती है। यह नष्ट हो सकती है। ऐसा भगवान को दृष्ट नहीं है। इसीलिए इस कालचक्र को कायम रखने के लिए भगवान को बीच में सतयुग रूपी टेका (आधार) लगाकर इसे स्थिर रखना आवश्यक है।
-एक भारतीय योगी
(अखण्ड-ज्योति, जुलाई 1959 पृष्ठ 25)
इस विश्व-वाटिका में एक से एक बढ़ कर सुगंधित और सुन्दर फूल खिलते रहते है। काँटे तो यहाँ मात्र अपने भ्रम जंजालों और दुष्कर्मों के ही है।