ओ सविता देवता! संदेशा, मेरा तुम ले जाना। जहाँ कहीं हों गुरुवर, उन तक सुनो इसे पहुँचाना॥
कष्ट दिया तुमको कि तुम्हारी, ही सब जगह पहुँच है। सब लोकों के अधिपति हो, यह बात शास्त्र सम्मत है॥
हम लाखों बच्चों के हित तुम, इतना कष्ट उठाना॥ कहना-”चले गये तुम, पर विश्वास सुदृढ़ यह रखना।
बचा कार्य हम पूर्ण करेंगे, अब न पड़ेगा कहना॥ रहो कहीं, पर शक्ति सतत् बढ़ने की देते जाना॥
आँसू भी आये थे, पर उनको कर यत्न सुखाया। त्यागी देहासक्ति, और उपदेशों को दुहराया॥
बन सिद्धान्त बसे हो हम सबमें, न इसे बिसराना॥ लक्ष्यपूर्ति में ही सान्निध्य, तुम्हारा हम पायेंगे।
सिसकेगा तो हृदय मगर, यह कहकर समझायेंगे॥ वह विराट् प्राणी तो साथ है, अतः न मन घबराना॥
तुम केवल मानव कब थे, प्रभु! तुम तो थे अवतारी। युग परिवर्तन हित दी, “युग निर्माण योजना” प्यारी॥
इसमें मिला सही जीवन, जीने का विशद खजाना॥ वे हैं गायत्री सुत, सत्यलोक में मिल जायेंगे।
सुन कर यह संदेश शाँति, आत्मा की वे पायेंगे॥ लिया बहुत उनसे हम सबने, अब है फर्ज निभाना॥