मनोबल बढ़ा कर (Kahani)

August 1990

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प्रखरता की सर्वमान्य परिभाषा है आदर्शों से समझौता न करना। उनके जीवन पटल पर प्रखरता इसी रूप में प्रकाशित रही। उस रोज एक कार्यकर्ता कलकत्ता निवासी किसी सेठ की उनके पास लेकर पहुँचे। परिचय दिया, सेठ जी समाज सेवा के कार्य में कुछ दान करना चाहते है। सेठ जी ने अपनी बात शुरू की देखिए स्वामी जी। मैं दान तो बहुत करूंगा। पर मेरी एक शर्त है कि उस धन से कमरे बनें और उनमें से हर कमरे में मेरे परिवारजनों के नाम खुदवायें, सुनकर वह थोड़ा चकित हो कार्यकर्ता को झिड़कते हुए बोले “अरे ये तो कब्रिस्तान बनाना चाहते हैं। इन्हें तुमने मिशन का स्वरूप और मेरे उद्देश्य नहीं समझाए क्या? जाओ ले जाओ मुझे इनका एक पैसा नहीं चाहिए।” सेठ जी यह सब सुनकर सन्न रह गये। उन्हें अन्य जगहों और इनमें फर्क साफ नजर आने लगा था। अपनी इसी प्रखरता की दुधारी तलवार से वह आजीवन आदर्शों के अवरोधों को काटते रहे।

महामानव संवेदनाओं के घनीभूत रूप होते है। सम्वेदनाएं उनका स्पर्श पा सजीव होती है ओर वे संवेदनाओं का स्पर्श पा द्रवित होते है। सन् 84 में उन पर हुए एक हमले ने परिजनों के दिलों को झकझोर दिया। आने-जाने वालों का ताँता लगा था। इन्हीं में एक फटे हाल प्रौढ़वय की महिला भी आई। कमरे में अन्दर आते ही रोने लगी। सांत्वना देने पर बड़ी मुश्किल से अपनी सिसकियों को थामती हुई बोली “गुरुजी आपके लिये दवा लाई हूँ” फिर बताने लगी मेरे गाँव में एक साइकिल वाला डॉक्टर आता है। मैंने उससे पूछा-मेरे गुरुजी को चोट लगी है सो उसने एक ट्यूब और पट्टियाँ दे दी।” कहते हुए उसने अपने झोले से एक फ्यूरासिन का छोटा पैक और कुछ बैण्डेज निकाले। उन्होंने उसे अपने हाथ में लेकर पास में खड़े कार्यकर्ता को निर्देश दिया “आज इसी से मेरी पट्टी करना” और उसे बड़े प्रेम से समझा बुझाकर रवाना किया। शाम को उसी के सामान से पट्टी करवाई गई। इस तरह उनसे सघन रूप से जुड़ी थी जनभावनाएँ।

एक महिला उसी डिब्बे में बैठी थी जिसमें पूज्य गुरुदेव बैठे अजमेर जा रहे थे। अजमेर में एक महायज्ञ था। वे अकेले एक लोहे का बक्सा व बेडिंग लिये हुए थे। कहीं से भी महात्मा जी, गुरु जी नजर नहीं आते थे। वह महिला सतत् रो रही थी। उनने बार-बार उससे पूछा तो इतना ही बोली-’गत माह ही पति का देहान्त हुआ है। संतान है नहीं। सुना है मथुरा से कोई गुरुजी आ रहे हैं। अजमेर इसी या में उनका दर्शन करने जा रही हूँ ताकि मन की शान्ति मिले या मौत ही मिले।” गुरुजी मुस्कराते हुए उसे हर स्टेशन पर पानी भी देते रहे व समझाते रहे कि गुरुजी से हमारी पहचान है मिला देंगे।

अजमेर स्टेशन आया। वह महिला यह देखकर स्तब्ध थी कि जो सज्जन उसे पानी पिलाकर कष्ट पूछ रहे थे, वे ही गुरुजी थे। चरणों में गिर पड़ी। उसके रहने की व्यवस्था का निर्देश देकर गुरुदेव यज्ञ स्थल पहुँच गए। अगले दिन वे वहाँ के एक प्रमुख कार्यकर्ता मोहनलाल जी से बोले-”एक अनाथ बालक लेकर आओ, वे दो दिन तक घूमते रहे। फिर एक महिला चिकित्सक श्रीमती सक्सेना से मिले। उनने दो दिन पूर्व ही एक आपरेशन किया था जिसमें माँ पहले ही प्रसव वेदना में मर चुकी थी बच्चा जीवित था। परिवार वाले उस बच्चे के पिता की नई शादी के लिए नवजात शिशु से छुटकारा पाना चाहते थे। महिला चिकित्सक ने वह बच्चा मोहनलाल जी को दिया। गुरुदेव के समक्ष बच्चा लाया गया। वह महिला जाति के विषय में थोड़ा शंकित दिखी। उनने सारे शरीर पर हाथ फेर कर कहा कि “इसे ब्राह्मण बना दिया है। अब इसे अपना बेटा मानकर पालो। यह मेरा भी बेटा है।”

वही बिलासपुर (म.प्र.) में जूनियर इंजीनियर है, अपनी माँ की खूब सेवा कर रहा है। गुरुदेव की कृपा को वे अपना पुनर्जीवन मानती है। कहती है कि “निराशा के सागर में उबार कर नयी जिन्दगी दी, बेटा दिया व मैं निहाल हो गयी।” ऐसे अनगिनत व्यक्तियों को उनने नया जीवन दिया, मनोबल बढ़ा कर जीवन जीने की दिशा ही।


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