हे तपःपूत, वेदमूर्ति, हे ज्ञानदूत! हम अकिंचन, जिन्हें आपने हाथ में कलम थमा कर लिखना सिखाया, इस योग्य नहीं है कि हिमालय से भी विराट आपके उस व्यक्तित्व पर प्रकाश डाल सकें जो आपने अस्सी वर्ष के जीवन के रूप में स्थूल काया से जीकर इस धरित्री को धन्य बना दिया। हे युगदृष्टा, युगप्रवर्तक! जिन लाखों परिजनों को आपने छाती से माँ की तरह चिपटाकर आजीवन अपने पास रखा, उन्हें आश्वासन तो दे गए कि उनको दिव्य संरक्षण अपने सूक्ष्म अस्तित्व से देते रहेंगे किन्तु यह कैसे भूल गए कि हाड़ माँस के ये पुतले अभी शक्तिहीन हैं, इनके कन्धे अभी निर्बल हैं, ये कैसे आपके कर्तव्य को शब्दकृति दे सकेंगे। महाकाल की सत्ता के पक्षधर हे हमारे प्रिय गुरुदेव! यह श्रद्धांजलि अंक आपके ही श्रीचरणों में समर्पित है। यदि इसमें कुछ श्रेष्ठ है तो वह आपका ही है, हे युग ऋषि! यदि कहीं कोई कमी है, कुछ त्रुटियाँ हैं तो वह हम अज्ञानी बालकों की नादानी वश हुई मान, क्षमा दान दे।
-आपके ही
हम सब ब्रह्मवर्चस शान्तिकुँजवासी शिष्यगण