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August 1990

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नारी धरती की देवी है उसे कामिनी, रमणी बनाकर सर्पिणी स्तर तक न घसीट ले जाओ।

वैदिक साहित्य में विश्वजित यज्ञ की बड़ी महिमा बखान की है। पर कठिन होने के कारण उस समय भी इसे काम ही लोग कर पाते थे। कठिन इसलिये था, क्योंकि इसमें सर्वजनहिताय सर्वजनसुखाय अपना सर्वस्व अर्पण करना पड़ता था। महाराज रघु ने इसे सविधि किया था। नचिकेता के पिता तो सिर्फ चिह्न पूजा कर रहे थे बालक के टोकने पर उस पर नाराज हो बैठे।

जो विधा तुम्हें अहंकार, आलस्य और अनीति की ओर धकेले उसे प्राप्त करने की अपेक्षा अशिक्षित रहना अच्छा।

सफलताओं का ढिंढोरा पीटना ईर्ष्यालुओं को न्यौत बुलाना है। प्रसिद्ध होने की चाह झाड़ियों में भटकाती ओर भेड़ियों की माँद तक पहुँचाती है।


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