छाती तोड़ महान परिश्रम, तेरे का परिणाम। झपट, हड़पता रहता है, यह क्रूर विश्व अविराम॥
तू भूखा, नंगा रोगी रहता, व्याकुल बेचैन। पर वह ‘ही-ही’ हँसता है, लखि तेरे गीले नैन॥
तेरा करुणा पूर्ण दुखों से, जाता हृदय पसीज। पर वह झुँझलाता है, उलटा तुझ पर बरबस खीझ॥
इस पूँजीमय निर्दय जग का, देख कुटिल व्यवहार। ज्वालामुखी! न फट जना। मिट जायेगा संसार॥
ओ, हिमगिरि से क्षमाशील, उपकारी सदय किसान! देव! शान्त रखना अपना दुखपूरित हृदय महान॥
-श्रीराम ‘मत्त’
मत्त-प्रलाप