प्राणघातक व्यसन

मायत्री महामंत्र का उन्नीसवाँ अक्षर यो हमको हानिकारक दुर्व्यसनों से बचने की शिक्षा देता है- योजनं व्यसनेभ्यः स्यात्तानिपुसस्तु शत्रव: । मिलित्वैतानि सवार्णि समयेध्न्नन्ति मानवम् । । अर्थात- व्यसनों से कोसों दूर रहे, क्योंकि वे प्राणघातक शत्रु हैं ।

व्यसन मनुष्य के वास्तविक प्राणघातक शत्रु हैं । इनमें मादक पदार्थ प्रधान है । तमाखू, चाय, गाँजा, चरस, भाँग, अफीम, शराब आदि नशीली चीजें एक से एक बढ़कर हानिकारक हैं । जैसे थके हुए घोड़े को चाबुक मारकर दौड़ाते हैं परन्तु अन्त में उससे घोड़े की बची-खुची शक्ति भी नष्ट हो जाती है, उसी प्रकार नशा पीने से आरम्भ में तो कुछ फुर्ती-सी दिखलाई पड़ती हैं, परन्तु परिणाम स्वरूप उससे रही सही शक्ति भी जाती रहती है । मादक द्रव्य सेवन करने वाला व्यक्ति दिन-दिन क्षीण होते-होते अकाल मृत्यु के मुख में चला जाता है । व्यसन मित्र के रुप में हमारे शरीर में घुसते हैं और शत्रु बनकर उसे मार डालते हैं ।

नशीले पदार्थों के अतिरिक्त और भी आदतें है जो शरीर और मन को हानि पहुँचाती हैं, पर आकर्षण और आदत के कारण मनुष्य उनका गुलाम बन जाता है । सिनेमा, नाच-रंग, व्यभिचार, जुआ आदि कितनी ही हानिकारक और अप्रतिष्ठाजनक आदतों में लोग फँस जाते हैं और अपना धन, समय तथा स्वास्थ्य बर्बाद कर डालते हैं ।

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118