विचारक डॉ. मार्टिना (Kahani)

August 1990

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पश्चिम के एक ख्यातिनामा विचारक डॉ. मार्टिना एक जगह कहते हैं छोटी छोटी बातें मिलकर पूर्णता बन जाती हैं और पूर्णता कोई छोटी बात नहीं हैं। गुरुदेव के जीवन की हर छोटी बात में उनकी पूर्णता की झाँकी झलकती हुई दिखाई देती है। मथुरा के दिनों की बात हैं वह कार्यक्रम के सिलसिले में लम्बे प्रवास पर थे। साथ चल रहे स्वयं सेवक की उनके साथ यह पहली यात्रा थी। एक स्थान पर रुकना हुआ। रात्रि में सोने के पहले उसे हिदायत देते हुए बोले “देखो! यहाँ रात तीन बजे मत जग कर बैठ जाना। तुम्हारे इस तरह जगने से घर वालों को तकलीफ होगी। अपनी खाट पर बैठकर ही भगवान का नाम ले लेना। सुबह चाय पीने हो तो आहिस्ते से स्टोव जलाकर पी लेना।” ऐसी तमाम नगण्य सी लगने वाली बातों के बारे में समझाकर उसे सोने की इजाजत दी।

सोने के लिए लेटे हुए स्वयं सेवक को अभी इन छोटी बातों में उसकी पूर्णता की झलक मिल रही थी।

यथार्थ शिक्षण वाणी से नहीं जीवन से होता है। उपदेश नहीं कर्तृत्व इसे बल प्रदान करता है। उन्हीं के ये शब्द उनके समूचे जीवन में रमे थे। उस दिन किसी कार्यक्रम के सिलसिले में वह रेलगाड़ी में जा रहे थे। गन्तव्य स्टेशन आने पर उतरना हुआ। पास में बिस्तरबन्द बैग आदि सामान था। साथ में आए कार्यकर्ता ने कुली। कुली॥ की आवाज लगाई। निकट में कुल न दिखने पर थोड़ी दूर पर उसे खोजने निकल गया। लौट कर आने पर सामने के दृश्य ने उसके होशोहवास गुम कर दिए। हुआ यह कि गुरुदेव उसका व अपना सामान सिर पर व कन्धे पर लाद कर चल दिए थे। बेचारा कुली का साथ छोड़कर तेज कदमों से उनके पास पहुँचा। प्रार्थना की कि वह सामान उसे दे दें। इस पर वह बोले-”न भाई मैं ठहरा गरीब ब्राह्मण और तू बड़ा आदमी।” सुनकर कार्यकर्ता और शर्मिंदा हो गया। जैसे तैसे उन्होंने उसका सामान तो दिया पर अपना यथावत लादे चलते रहे।,

कार्यकर्ता लोकसेवी ब्राह्मण की मर्यादा का यथार्थ शिक्षण पा रहा था।

एक दिन एक उच्च पदस्थ अधिकारी अपने एक मित्र के साथ पधारे। तपोभूमि के एक कमरे में उनके मुलाकात की व्यवस्था हुई। दोनों के अनेक बार न न करने पर भी गुरुदेव ने उन्हें आग्रहपूर्वक कुर्सी पर बिठाया। कोई सुप्रसिद्ध सन्त इस तरह उन्हें सम्मान देगा इसकी उन्हें कल्पना नहीं थी। लगभग आधा घण्टे बात चीत का क्रम चला। तत्पश्चात् वे दोनों बाहर आये। अपनी मोटर पर बैठते हुए अधिकारी महोदय अपने मित्र से कह रहे थे-”वन्डरफुल पर्सन। एवरीवन्स आनर इज सेफ इन हिज हैण्ड्स” “आश्चर्यजनक व्यक्ति, प्रत्येक व्यक्ति का सम्मान उनके हाथों में सुरक्षित है।” पास खड़े इसे सुन रहे एक कार्यकर्ता ने जब यह टिप्पणी उन्हें सुनायी तो हंसते हुए कहने लगे शिष्टाचार व प्रशंसा में अद्भुत शक्ति है। इस शक्ति का सदुपयोग कर तुम सारी दुनिया के हृदय के सम्राट बन सकते हो।


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