प्रायश्चित के तीन चरण है सच्चे मन से पश्चाताप, भविष्य में वैसा न करने की प्रतिज्ञा और जितनी हानि पहुँचाई गई है उसकी क्षति पूर्ति।
प्रशंसा एक प्रकार की अफीम है। जिसकी खुमारी में मनुष्य यह भूल जाता है कि अभी और भी कुछ करना शेष है।
भक्त जिसे भगवान कहते हैं। योगी जिसे ब्रह्म और वेदांती आत्मा वह एक ही तत्व है। कहने भर के लिए पृथक् शब्दों का प्रयोग होता है।