अंधकार कुछ सूझ न पड़ता, होता है हिमपात। जग की सारी शक्ति लगाए बैठीं तेरी घात॥
इंद्र-ब्रज गिरता है ऊपर, लेता सिंधु उफान। मेरु उड़े जाते है, ऐसा आता है तूफान॥
नष्ट-भ्रष्ट करने आते है, प्रलय मेघ घनघोर। पर तेरा तो पथ निश्चित है, बढ़ता जा उस ओर॥
देख-देख, इन बाधाओं को, पथिक! न घबरा जाना! सब कुछ करना सहन, किंतु मत पीछे पैर हटाना!!
-श्रीराम ‘मत्त’
किसान