अभी कम दिया (Kahani)

August 1990

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बात गायों पर चल रही थी। गौ ग्रास एक अंक हाथ में लिए पूज्य गुरुदेव विचार कर रहे थे कि कौन से वे उपाय हैं जिनके आधार पर इस नस्ल की रक्षा बढ़ोत्तरी की जा सके। ढूंढ़-खोज आर्थिक आधार पर थी। चर्चा के दौरान पास बैठा एक वाचाल शिष्य बोल उठा-”गुरुजी गायों पर तो बहुतों ने सोचा है। लेकिन ओर एक ऐसा प्राणी है गधा। उस पर दिन-रात बोझा लादा जाता है और शाम को बिना कुछ चारा डाले  ही छोड़ दिया जाता है। और गधे के मालिक ही उन पर अत्याचार करे यह बात तो  सही नहीं। जिनका उससे प्रत्यक्ष संबंध नहीं है, वे भी पीछे नहीं रहते। किसी को मूर्ख बनाने की कोशिश होती है तो उसका नाम लिया जाता है।”

वह बोले-”तू ठीक कहता है। एक आदमी के लिए सब कुछ संभव नहीं। मैं गायों को संभालता हूँ, तू गधे को संभाल। बना डाल एक गर्दभ सेवा संघ। वैसे चिन्ता न कर मैं तेरे बारे में बहुत सोचता हूँ।” साथ ही सभी की खिलखिलाहट कमरे में बिखर गई। वह भी हँसते हुए बोले-”जितनी ऊर्जा भोजन से मिलती है, उतनी ही हँसी से।” सचमुच सत्पुरुष अपने ऐसे ही सौम्य हास्य से नई स्फूर्ति प्राप्त कर दूने वेग से काम में जुटा करते हैं।

प्रेम में मनुष्य सब कुछ दे कर भी यही सोचता है कि अभी कम दिया।


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