महाप्राण! इन प्राणों ने तुमसे ही अब तक गति पाई (Kavita)

August 1990

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कैसे दें? हम तुम्हें विदाई। क्योंकि तुम्हारी प्राण चेतना ही, प्राणों के बीच समाई॥1॥

विदा कर दिया तुम्हें अगर, तो क्या अस्तित्व हमारा होगा। बिना प्राण के इस काया में, क्या व्यक्तित्व हमारा होगा॥ महाप्राण! तुममें ही अब तक, इन प्राणों ने है गति पाई। कैसे दें? हम तुम्हें विदाई॥2॥

जन मंगल-पथ पर उछालने, तुम्हें उछलते रहे प्राण में। युग-पीड़ा मन में उभारने, तुम्हीं मचलते रहे प्राण में॥ करुणानिधि! तुमने करुणा कर, संवेदन की सुधा पिलाई। कैसे दें? हम तुम्हें विदाई॥3॥

तुम ही साँसों के तारों पर, प्रतिक्षण ही डोल रहे हो। और हमारी हर धड़कन में, जब तुम ही तो बोल रहे हो॥ कैसे कहें, विछोह हुआ है, बने हुए हो जब परछाई। कैसे दें? हम तुम्हें विदाई॥4॥

हम भी साथ नहीं छोड़ेंगे, यह आश्वासन देते है हम। कमर बाँधकर खड़े रहेंगे, खड़ा, जहाँ भी कर दोगे तुम॥ लक्ष्य तुम्हारी तक पहुंचेंगे, हमने कसम तुम्हारी खाई। कैसे दें? हम तुम्हें विदाई॥5॥

साथ आपके खड़े रहेंगे, नई सदी का स्वागत करने। और दीपसा जले रहेंगे, जन पथ पर छाया तम हरने। वह मशाल अब सदा जलेगी, जिसको तुमने हमें थमाई। कैसे दें? हम तुम्हें विदाई॥6॥

पार्थिव को तो विदा कर दिया, इस सीने पर पत्थर रखकर। लेकिन तुम्हें सहेज लिया है, अपने इन प्राणों में भर कर॥ तुम तो महाकाल, हो जिसने, कालचक्र की चाल चलाई। कैसे दें? हम तुम्हें विदाई॥7॥


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