जाति जन्म से नहीं कर्म से बनती हैं। जो ब्रह्म परायण हैं, वह ब्राह्मण,जो अनीति के विरुद्ध लड़ता हैं सो क्षत्रिय। जो आदान प्रदान की व्यवस्था बनाता हैं वह वैश्य। जो श्रमरत हैं सो शूद्र।
परिवार संस्था ही नर रत्नों की खदान बन सकती हैं
बहादुरी का अर्थ है हिम्मत भरी साहसिकता, निर्भीक पुरुषार्थ परायणता।