छोटा न मत करो! नया आकाश तुम्हें दूँगा। नभ को भी छू सको, वही विश्वास तुम्हें दूँगा॥1॥
बहुत रो लिये, रोने-धोने की बातें छोड़ो रो-रो कर, मत अपनी, रत्नों सी आँखें फोड़ो
मुस्कानों से भरा हुआ मधुमास तुम्हें दूंगा छोटा मन मत करो। नया आकाश तुम्हें दूँगा
पतन, पराभव की दुनिया, अब मत स्वीकार करो। दीन-हीन जीवन जीने से, अब इन्कार करो॥
गौरव से जी सको, वही उल्लास तुम्हें दूँगा। छोटा मन मत करो! नया आकाश तुम्हें दूँगा॥3॥
कुछ करने के योग्य नहीं हो, छोड़ो इस भ्रम को असफलता ही मिली अभी तक, तोड़ो इस क्रम को
चरण सफलता चूम रही, आभास तुम्हें दूँगा छोटा मन मत करो। नया आकाश तुम्हें दूँगा
भूल रहे हो तुम, ऋषियों की परम्पराएँ हो। सिद्धि साधना से, पाने वाली क्षमताएँ हो॥
घबराओ मत! वही, अमर इतिहास तुम्हें दूँगा। छोटा मन मत करो! नवा आकाश तुम्हें दूँगा॥5॥
जब सुषुप्त-देवत्व तुम्हारा, तुम में जागेगा स्वर्ग, धरा पर आने, की अनुमतियाँ माँगेगा
आशीषों के आँचल में आवास तुम्हें दूँगा छोटा मन मत करो! नया आकाश तुम्हें दूँगा॥6॥
प्रज्ञा-पुत्रों! तुम प्रज्ञा-युग, के आराधक हो। और लोक मंगल के, शिव-संकल्पी साधक हो॥
तुम मेरे हो, जो है, मेरे पास तुम्हें दूँगा। छोटा मन मत करो! नया आकाश तुम्हें दूँगा॥7॥