युग परिवर्तन (kavita)

August 1990

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माता! व्यथित हुई कैसे? जल आँखों में भर आया। हैं! रोती है। कैसा संकट, जननी तुझ पर आया॥

किधर गया? वह नारकीय नर, जिसने तुझे सताया। इतनी हिम्मत? किसने की? था कौन? कहाँ से आया??

कर तेरा अपमान, इसी जगती पर है, जीवित है? बता कोन है? इन्द्र? वज्र? रवि? वायु? सिंधु? पर्वत है??

कोई भी हो, तोरा दुश्मन, निश्चय मिट जावेगा। त्रिंस कोटि हुँकारों से, नभ मण्डल फट जावेगा॥

-श्रीराम ‘मत्त’

परिवर्तन युग

(पं. श्रीराम ‘मत्त’)


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