बात सन् 1960 के आस पास की है। एक वरिष्ठ राजनेता गायत्री तपोभूमि पधारे। गुरुदेव ने बड़े ही आत्मीयतापूर्ण ढंग से मिशन की विभिन्न गतिविधियों से उन्हें अवगत कराया। देश व्यापी संगठन का स्वरूप तपोभूमि द्वारा संचालित क्रिया–कलापों ने उन्हें सुखद आश्चर्य से भर दिया। प्रसन्न होते हुए बोले “आचार्य जी यह सब आपकी तप साधना से प्राप्त दिव्य शक्तियों का चमत्कार है। अन्यथा मनुष्य कितना भी प्रतिभाशाली क्यों न हो इतना सब नहीं कर सकता।”
गुरुदेव हंसते हुए बोले-तप साधना नहीं ब्राह्मणत्व का चमत्कार कहिए। तप साधना तो अभी तिजोरी में बन्द है। “ब्राह्मणत्व? ब्राह्मण तो अनेकों है” शायद यह मन्तव्य समझ नहीं पाये थे। उनका जवाब था “ब्राह्मण वह है जो समाज से न्यूनतम लेकर समाज को अधिकतम दे। इसके बिना भी कभी कोई ब्राह्मण हुआ है। राजनेता चकित होते हुए बोले “ओह ब्रह्मर्षि वशिष्ठ के ब्राह्मणत्व के चमत्कार तो मैं रामायण आदि ग्रंथों में पढ़ा करता था आज प्रत्यक्ष देख लिया।”