समारोह की समाप्ति (Kahani)

August 1990

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पूज्य गुरुदेव न केवल अंग्रेजी समझते थे, पढ़ लेते थे बल्कि बिल्कुल शुद्ध उच्चारण भी उसका कर लेते थे। तपोभूमि आने वालों में कई विदेशी हुआ करते थे। कनाडा, रशिया, जर्मनी से आयें व्यक्तियों से इस तरह बातचीत करते कि उनकी जिज्ञासा का समाधान हो जाता। शांतिकुंज आने पर भी यह सिलसिला ऊपर आकर बताया कि “मेक्सिको से एक स्पेनिश विद्वान आए है। उनकी पत्नी अंग्रेजी जानती है पर हिन्दी नहीं। मैं दुभाषिये का काम कर दूँगा। वे गायत्री मंत्र पर आपसे चर्चा करना चाहते हैं।” हँसकर वे बोले “अच्छा। बुला ला। “ऊपर आने पर जैसे ही बातचीत का क्रम आरंभ हुआ। उन सज्जन ने अपनी स्पेनिश में कुछ कहा। जब तक उनकी पत्नी अंग्रेजी अनुवाद करतीं व बीच में टपके वे कार्यकर्ता महोदय हिंदी अनुवाद तब तक पूज्य गुरुदेव उसका अँग्रेजी में जवाब भी दे चुके थे। आधे घण्टे तक यह प्रसंग चलता रहा। सब अवाक् थे। समझने में आया मनीषी भाषाओं के धरातल से भी ऊँचे होते हैं व कभी भी अपनी महानता अपने मुँह से कहते नहीं।

जिसे जनता पर विश्वास हो जनता उसके ऊपर विश्वास करे। इन विश्वासों का मिलन जिसके दिल की गहराइयों में हो वही तो सच्चा लोकनायक है। यह तथ्य ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान के उद्घाटन दिवस पर मूर्त हो उठा। इस अवसर पर उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल जी. डी. तपासे आए हुए थे। अनेकों गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति में गुरुदेव किसी संदर्भ में बोले “हम सरकार से पैसों की अपेक्षा नहीं करते। सरकार के पास अपने ही बहुत काम है, जो धन के अभाव में अधूरे पड़े है।”

समारोह की समाप्ति पर महामहिम राज्यपाल महोदय कुछ मजाक के स्वर में बोले “आचार्य जी! सरकार से आपको पैसा चाहिए नहीं, धनपतियों से आप माँगते नहीं। फिर आपका स्रोत क्या है?” मजाक का जवाब मजाक में देते हुए उन्होंने कहा “मैंने एक जिन्न सिद्ध कर रखा है। बड़ा करामाती जिन्न है। मेरे कार्यक्रमों को तो वही पूरा करता है।” सुनकर राज्यपाल आश्चर्य से उनकी और देखने लगे-वह भी हँसते हुए बोले “चलो आप तो अपने है-बताए देता हूँ उसका नाम, मेरा जिन्न है- भारत की जनता।”

जनता पर उनके अखण्ड विश्वास को देख महामहिम राज्यपाल के मुख से निकला आचार्य जी! आप सच्चे लोकनायक है।


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