ईश्वरीय शक्तियाँ उनकी सहायक बनी (Kahani)

August 1990

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रात्रि को जल्दी सोना व प्रातः डेढ़ बजे से उठकर अपनी दिनचर्या प्रारंभ कर देना उनकी एक नियत दिनचर्या थी। जब आंवलखेड़ा व मथुरा में थे तो गुरुदेव अपने साथ बच्चों को पास बुलाकर तारों में से एक एक की पहचान करवाते। उन सभी ग्रहों गोलकों, नक्षत्रों के बारे में विस्तार से समझाते। बालसुलभ जिज्ञासाओं का वर्णन करते हुए बताते कि-”इन नक्षत्रों व पृथ्वी की स्थिति में क्या अन्तर है। चन्द्रमा कैसे बढ़ते बढ़ते पूर्णिमा का चन्द्रमा व घटते घटते अमावस्या बना देता है, गुरुत्वाकर्षण शक्ति क्या है वह किस आधार पर सितारों से टंकी यह चादर ऊपर लगी हुई, हमारे ऊपर नहीं गिरती? बिजली पहले चमकती है कि गरजती है?” जिन सौभाग्यशालियों को यह अवसर मिला है, वे बताते हैं कि विज्ञान की विशद जानकारियों, जो उनने अध्ययन से बढ़ाई थीं, से उन्हें किस तरह लाभान्वित कर उनकी रुचि विज्ञान की ओर मोड़ दी गयी। अंतरिक्ष विज्ञान की उन्हें उतनी ही विस्तृत जानकारी थी, जितनी कि उस विषय के विशेषज्ञ को हो सकती है।

साधना का निवास स्थान है-ईश्वर विश्वास। इसके अभाव में साधना टिक नहीं सकती। जो अनेकानेक साधनाओं का पथ-प्रदर्शक हो उसके पास तो ईश्वर अपनी चरम और परम स्थिति में होना चाहिए। था भी ऐसा। मथुरा के दिनों का प्रसंग है, तब विख्यात उद्योगपति जुगलकिशोर बिड़ला अक्सर आया करते थे। एक दिन आने पर उन्होंने कहा “आचार्य जी!मैं आपकी कुछ आर्थिक सहायता करना चाहता हूँ। “मिशन तब अपनी शैशव अवस्था से गुजर रहा था, अर्थ की आवश्यकता तो थी ही। वह हंसते हुए बोले-”बिड़ला जी! कहाँ से आता है धन आपके पास “भगवान देता है। “ उनका जबाब था। “अच्छा! तब भगवान से हमारी सीधी जान-पहचान है, वहीं से हम भी ले लेंगे। “ हंसते हुए कही गई इस बात ने उनका जीवन दर्शन स्पष्ट कर दिया। प्रत्यक्ष रूप से जनता जनार्दन के दस-दस पैसों का अंशदान और परोक्ष रूप से ईश्वरीय शक्तियाँ उनकी सहायक बनी। पूंजीपतियों पर निर्भरता उन्हें कभी स्वीकार न थी।


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