विषधर सर्प आड़े समय पर केंचुए की भाँति बिलों में दुबके नहीं पड़े रहते। जिनके पास तनिक भी साहस, शौर्य, संघर्ष की शक्ति है, वह विषम समय पर प्रकट हुए बिना नहीं रहता। फिर जो इससे भरे-पूरे हैं, उनका कहना ही क्या? पूज्य गुरुदेव के साथ कुछ ऐसा ही था। राष्ट्र पिता के आह्वान पर देश भर में नमक सत्याग्रह प्रारंभ हुआ। आगरा जिले में एक स्थान पर 17-18 वर्ष के तरुण श्रीराम भी अपने साथियों के साथ नमक बनाने में जुटे थे। प्रशासन का प्रतिरोध तो होना ही था। पुलिस की लाठियों के आतंक के मारे भगदड़ मच गई। इस हड़बड़ी में वह नमक के कुंड में गिर गए। नमकीन घोल शरीर स्वास्थ्य के लिए कितना हानिकारक होता है, यह जानकारों से छुपा नहीं। पर वह दम साधे पड़े रहे। सारा तूफान शान्त हो जाने पर हँसते हुए कुंड के बाहर निकल आये। लोग उनके इस तरह निकलने पर भौंचक्के थे। किसी ने कहा-अमुक तकलीफ होगी, कोई कहता वह कष्ट तो होकर ही रहेगा पर कहीं कुछ नहीं वह नहा’-धोकर पूर्ववत् हँस रहे थे शौर्य और जिजीविषा का यह अद्भुत मिलन जिसने भी देखा उसी ने दाँतों तले अंगुली दबा ली।
अपराह्न के करीब साढ़े तीन बजे होंगे। वह अपने कमरे में बैठे सेविंग कर रहें थे, साथ ही घर से लौटकर आए एक कार्यकर्ता से बात-चीत भी। सेविंग करने के उपरान्त जैसे ही उनने सामान रखा कि कार्यकर्ता उस और लपका। उन्होंने तुरंत टोका-”उसका जवाब था। “हाँ-हाँ! तू तो मेरे बदले मुँह भी धो आएगा। कहते हुए उन्होंने स्वयं सामान उठाया और निकट तौलिए से अपना मुँह पोंछते हुए बोले- “हारी-बीमारी अथवा किसी दूसरे से सेवा लेना अपराध जैसा हैं”। सेवा न लेने की वृत्ति के इस उत्कट स्वरूप को कार्यकर्ता मौन हो निहार रहा था।