धर्म की सुदृढ़ धारणा

धर्म की सुदृढ़ धारणा गायत्री का अठारहवां अक्षर "यो"धर्म-मार्ग पर स्थिर रहने का आदेश देता है। यो धर्मा जगदाधार स्वाचरणो तमानय, मा विडम्बय तं स ते ह्येकामार्गे सहायक: । अर्थात्- ' 'जो धर्म संसार का आधार है ।उस मार्ग पर आचरण करो। उसकी विडम्बना मत करो ।। धर्म ही तुम्हारा एक मात्र सहायक है । '' धर्म ही संसार का आधार है ।। उसके ऊपर विश्व का समस्त भार रखा है ।। यदि धर्माचरण उठ जाय तो सबको अपने प्राण बचाने और दूसरों को कुचलने की चिंता में निश-दिन डूबा रहना पड़ेगा और कोई भी चेन से न बैठ सकेगा ।। दुष्ट लोग भी धर्म की आड़ में लाभ उठाने, ठगी का जाल फैलाने की चेष्टा करते है ।। इससे मालूम होता है कि धर्म ही ऐसी मजबूत चीज है , जिसका आश्रय बुरे मनुष्य भी अपना काम चलाना चाहते है ।। मनुष्य को ऐसे सुदृढ़ आधार पर ही जीवन की इमारत का निर्माण करना चाहिए ।। ………..

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