प्रशंसकों पर ही प्रसन्न न हो। महत्व उन्हें भी दे जो सही आलोचना कर सकते है।
बड़प्पन शालीनता से मिलता है। पद और प्रतिष्ठा तो उसे चमकाते भर हैं।
स्थूल शरीर बनाम सूक्ष्म शरीर
जब तक स्थूल शरीर है, तभी तक झंझट हैं। सूक्ष्म शरीर में चले जाने पर तो वे आवश्यकताएँ समाप्त हो जाती है जो स्थूल शरीर के साथ जुड़ी हैं। सर्दी-गर्मी से बचाव, क्षुधा-पिपासा का निवारण, निद्रा और थकान का दबाव यह सब झंझट उस स्थिति में नहीं रहते हैं। पैरों से चलकर मनुष्य थोड़ी दूर जा सकता है किन्तु सूक्ष्म शरीर के लिए एक दिन में सैकड़ों योजन की यात्रा संभव है। एक साथ,एक मुख से पराशक्ति द्वारा सहस्रों व्यक्तियों के अंतःकरणों तक अपना संदेश पहुँचाया जा सकता है। दूसरों की इतनी सहायता सूक्ष्म शरीरधारी कर सकते हैं, जो स्थूल शरीर रहते संभव नहीं। इसीलिए सिद्ध पुरुष सूक्ष्म शरीर द्वारा काम करते हैं। उनकी साधनाएं भी स्थूल शरीर वालों की अपेक्षा भिन्न हैं।
(अखण्ड-ज्योति)
(अप्रैल 85, पृष्ठ 10)