बच्चों के प्रति पूज्यवर को बड़ा स्नेह था। अपनी बाल सुलभ सरलता के कारण वे बच्चों के साथ घुल-मिलकर एक हो जाते थे। कहानी, वह भी बच्चों की, काव्यात्मक भाषा में सुनाना एक कला है। वे इस कला के महारथी थे। रेल का आना, इंजन का चलना, कुत्ते का भौंकना, बंदर की खों खों, ढोल की ढमढम, क्रोध, आस्य प्रेम रस की अभिव्यक्ति इस प्रकार करते कि बच्चों की जिज्ञासा आगे का प्रसंग जानने के लिए सहज बढ़ जाती। सोद्देश्य बताते हुए कथा के एक मोड़ पर रुक कर पूछते-”बेटा, यदि ऐसा होता तू क्या करता” एवं फिर बच्चे का जवाब सुनकर कथा को आगे बढ़ा देते। कहानी में ध्वन्यात्मक शब्द यथा-”खट, खट, खट, शेर सपट्ट-इस तरह नाम हुआ खट्टू” जोड़ते हुए उसे ऐसी रोचक बना देते कि सब एकटक, स्तब्ध हो सुनते ही रहते। अपने अंतरंग क्षणों में कार्यकर्ताओं से भी इसी शैली में बात कर गंभीर विषयों को भी सरस बना देना उनके प्रतिपाद का अनूठापन था।