भूलेंगे कैसे? तेरे तप ने हमें किया निहाल (Kavita)

August 1990

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तप के बल पर आ जाते हैं, बड़े बड़े भूचाल। सूरज को भी हतप्रभ कर देता, तपसी का भाल॥1॥

जब सूरज तपता है, जलनिधि भी जलंधर बन जाता। सूरज के तप से, हिमनद का भी तो हिम गल जाता॥

सोना तपता है, तो काया भी कुंदन हो जाती। दूध तपा करता जब, ऊपर स्वयं मलाई आती॥

तप संभव कर देता सब कुछ, तप में बड़ा कमाल। तप के बल पर आ जाते हैं, बड़े बड़े भूचाल॥

आप तपे हैं इतना, तप के ही पर्याय हुये हैं। अरे तपस्वी! तपने भी आ, तेरे चरण छुए हैं।

केवल तन मन नहीं तपाये, जीवन प्राण तपाये। तेरे तप ने दधीचि से भी, आगे कदम बढ़ाये॥

तप की गाथाएं बौनी हैं, इतना हुआ विशाल। तप के बल पर आ जाते हैं, बड़े बड़े भूचाल॥

तेरा तप फिर कैसे, अपना रंग नहीं लायेगा। अब तेरा संकल्प कौन सा, पूर्ण न हो पायेगा॥

तेरे संकल्पों ने तपसी! हम को शिल्प किया है। तूने हमको अपने दुर्लभ तप का अंश दिया है॥

यह कैसे भूलेंगे, तूने हम को किया निहाल। तप के बल पर आ जाते हैं, बड़े बड़े भूचाल॥

हम मलाई बन कर तैरेंगे, जग की जलन मिटाने। और मनुजों के घावों को, शीतलता पहुँचाने॥

तेरे हैं, इसका परिचय, हम देंगे आचरणों से। जैसे सूरज का परिचय, मिलता उसकी किरणों से।

देते रहना हमें तपस्वी! गरिमा भरी उछाल। तप के बल पर आ जाते हैं, बड़े बड़े भूचाल॥

हम उज्ज्वल भविष्य, के आने तक चलते जायेंगे। और हमारे प्राणों के दीपक, जलते जायेंगे॥

नई सदी के अभिनन्दन में, आगे खड़े दिखेंगे। दुष्प्रवृत्तियों के उन्मूलन में, हम अड़े दिखेंगे॥

पहिनायेंगे महाकाल को, इन मुँडों की माल। तप के बल पर आ जाते हैं, बड़े बड़े भूचाल॥


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