खूड़ सीकर की एक घटना है। पूज्य गुरुदेव यज्ञ में वहाँ गये थे। शोभा यात्रा वहाँ से निकलनी थी जहाँ से वे गाँव में प्रवेश करने वाले थे स्व.वैद्य पं. रामगोपाल जी जोशी ने उनका स्वागत किया। देखा तो भाव लिए साठ से अधिक कुष्ठ रोगियों की एक पंक्ति भी खड़ी थी। पूज्यवर तुरन्त उनके पास पहुँचे, सबको स्पर्श कर आशीर्वाद दिया एवं फिर कहा कि “मैं आपकी तो कोई सेवा नहीं कर सकता क्योंकि यह अनिवार्य प्रारब्ध है जो आपको भुगतना पड़ रहा है। किन्तु एक आशीर्वाद व आश्वासन आपको देता हूँ कि आप लोगों के बाद आपकी संतानों को यह रोग नहीं होगा।” रोगी निहाल होकर उनके चरणों में गिर पड़े।
आज तीस वर्ष से भी अधिक हो गये है। उन कुष्ठ रोगियों के परिवारजनों में से किसी को भी रोग नहीं है। पूरी पंचायत क्षेत्र से उन रोगियों की मृत्यु के बाद कुष्ठ उन्मूलन हो गया है। ऐसा फलदायी प्रत्यक्ष आशीर्वचन स्वयं परमसत्ता ही दे सकती है।
संस्मरणों के माध्यम से अध्यात्म तत्व ज्ञान का गूढ़ विवेचन कर श्रोताओं के गले उतार देना एक बहुत बड़ी उपलब्धि है जो साधक स्तर का वक्ता ही अर्जित कर सकता है। यह सिद्धि पूज्य गुरुदेव को प्राप्त थी। उनके प्रवचनों को मूल आधार ही प्रेरक मार्मिक रुला देने वाले संस्मरण होते थे। जापान के गाँधी कागाबा, पिसनहारी हजारी किसान, जलाराम बापा, नरसी मेहता, मीरा, चैतन्य, महात्मा गाँधी इत्यादि के प्रसंगों में एक प्रसंग पर ही पूरा विवेचन कर श्रोताओं को उद्वेलित कर पूरे डेढ़ घण्टे तक बिठाये रहना उन्हीं का कौशल था। देव कन्याओं को वक्तृता का शिक्षण देते समय दहेज-बहू पर अत्याचार-खर्चीली शादी जैसे विषयों का सोदाहरण ऐसा मार्मिक चित्रण उनने हृदयंगम कराया कि जहाँ जहाँ उनके प्रवचन हुए श्रोताओं को उस उद्बोधन ने हिलाकर रख दिया। यही कथा शैली “रामचरित मानस की प्रगतिशील प्रेरणा” “गीता कथा” “बाल निर्माण की कहानियाँ” एवं “प्रज्ञापुराण” में प्रधानता पाकर जन-जन में लोक प्रिय बन गई।