इसी ने उन सभी को (Kahani)

August 1990

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जनता के असंख्यों दिलों की धड़कनें जिसके अपने दिल में स्पन्दित हो सकें वही तो करेगा लोकजीवन का पथ प्रदर्शन। उस दिन गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति अपने एक दो सहयोगियों के साथ आये हुए थे। मौसम अपनी पूरी उष्णता पर था। सीढ़ियाँ चढ़कर जैसे ही कुलपति महोदय पहुँचे-देखा गुरुदेव टहल रहें है। पंखा भी बंद है।

उनका अभिवादन करते हुए गुरुदेव ने पंखा चालू कर दिया। बैठने के बाद वार्ता शुरू हुई। बात-चीत के बीच में उन्होंने इधर-उधर देखते हुए कहा “यहाँ तो कूलर तक नहीं-आपकी एयरकंडीशनर तो लगवा ही लेना चाहिए। सारे दिन पढ़ने लिखने गम्भीर काम करने में कितनी परेशानी होती होगी?” सुनकर उनने गम्भीर स्वर में कहा “जिस दिन सारे भारत को ए.सी. दे सकूँगा, उस दिन मैं भी लगवा लूँगा। अभी तो इस पंखे का उपयोग भी आने-जाने वालों के लिए ही होता है।” वार्ता समाप्ति के पश्चात जैसे ही वे लोग नीचे उतरने के लिए मुड़े गुरुदेव ने स्वयं उठकर पंखा बंद कर दिया। उतरने वाले उनके हृदय की संवेदनशीलता में भारतीय जनजीवन के स्पंदन अनुभव कर रहे थे।

यह प्रामाणिकता ही उस अखण्ड-ज्योति का प्राण हैं जो आज तक अगणित व्यक्तियों में प्राण संचार करती आयी है। गुरुदेव “स्नेह से सनी एक सोने की लौ” अपने पास रखते थे जिसे ज्योति के रूप में अपने प्रियजनों तक हर माह एक पाती की तरह पहुँचा देते थे। इसी ने उन सभी को उनका अपना बनाया।


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