विदुर की पत्नी योगेश्वर कृष्ण को केले के छिलके खिलाती रही और वह आनन्द मग्न हो खाते रहे। आखिर उन्हें पदार्थ नहीं भाव जो प्रिय था। ऐसी घटी। वे अपने सहायक कार्यकर्ता के साथ एक घर में पहुँचे।घर में अकेली महिला थी। गुरुजी आए हैं सुनते ही भाव विह्वल हो उठी।क्या खिलाऊँ? क्या स्वागत करूं? कुछ सूझ नहीं रहा था दौड़ी दौड़ी गई दो गिलास दूध भरा पर जल्दी के मारे उसमें शक्कर की जगह एक एक मुट्ठी पिसा नमक डाल गई।
दूध मिलने पर गुरुदेव तो बड़े प्रेम से उसे पीने लगे। पीते हुए कभी दूध की प्रशंसा करते कभी उसकी जीवन शैली की। इधर साथ के कार्यकर्ता को उबकाइयाँ आ रही थी। इशारा करने के बावजूद वह कह ही बैठे तब तक गुरुजी अपनी दूध समाप्त कर चुके थे। महिला के दुखी होने पर बोले”बेटी इसके में नमक होगा मेरे में तो शकर थी।” थोड़ी देर तक उसे समझाते बुझाते रहे। बाहर निकलने पर कार्यकर्ता को प्रेम भरी डांट पिलाई बोले तुम्हें किसी की भावनाओं का ख्याल नहीं। कार्यकर्ता अवाक् हो “भावना ही जनार्दन”। इस उक्ति को साकार होते देख रहा था।