संपादकीय विभाग (Kahani)

August 1990

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

संपादकीय विभाग के तीन महत्वपूर्ण व्यक्तियों के इस्तीफा दे देने के कारण सौनिक पत्र के बन्द होने की नौबत आ पहुँची। इस संकट से निबटने की जिम्मेदारी पालीवाल जी ने उन दिनों मत्त जी के नाम से परिचित गुरुदेव को सौंपी। वह स्वयं उन दिनों जेल में थे। श्रमनिष्ठा की कठोर परीक्षा थी। संपादन प्रूफ रीडिंग करने के साथ कम्पोजिंग, छपाई वितरण की व्यवस्था सभी कुछ देखना पड़ता। बीस से लेकर तेईस घण्टे तक काम करना पड़ता। प्रेस के काम के साथ लोगों की घरेलू कामों में सहायता भी कर देते। जो देखता वही दांतों तले उँगली दबा लेता। पूछे जाने पर वह एक ही बात कहते “व्यक्ति की शक्तियाँ अपार है, पर इनकी अभिव्यक्ति का माध्यम है श्रम। जो जितना अधिक श्रम करता है, उसमें ये उतना ही अधिक प्रकट होती है। प्रत्यक्ष को प्रमाण क्या। लगभग एक साल में संकट का स्थाई हल निकला। बीच उनकी कर्मठता से सहकर्मी उसी तरह चमत्कृत रह गए जैसे हालैण्ड वासी प्रसिद्ध दार्शनिक स्विनोजा के श्रम से हुए थे। जो सारे दिन ताला बनाता चमकाता रात को तंग कोठरी में टिमटिमाते दीपक के प्रकाश में अध्ययन लेखन करता। तभी तो वह सारे जीवन यही समझते रहे कि श्रम महामानव बनाने वाला कीमिया हैं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles