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August 1990

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कभी-कभी जीवित भी मृतकों से बुरे सिद्ध होते हैं या कभी-कभी मृतक भी जीवितों से श्रेष्ठ गिने जाते हैं।

मुसकान स्नेह सौजन्य की भाषा है। खीझ अपने रोष, असंतोष और अशक्ति की अभिव्यक्ति।

जाति जन्म से नहीं कर्म से बनती है। जो ब्रह्म परायण है, वह ब्राह्मण। जो अनीति के विरुद्ध लड़ता है सो क्षत्रिय। जो आदान-प्रदान की व्यवस्था बनाता है वह वैश्य। जो श्रम रत है सो शूद्र।


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