नारी की महानता

नारी की महानता गायत्री मंत्र का पांचवां अक्षर 'व' नारी जाति की महानता और उसके विकास की शिक्षा देता है- व-वद नारीं विना कोऽन्यो निर्माता मनुसन्तते । महत्त्वं रचनाशक्तेः स्वस्या नार्या हि ज्ञायताम् ।। अर्थात- "मनुष्य की निर्मात्री नारी ही है । नारी को अपनी शक्ति का महत्व समझना चाहिए ।'' नारी से ही मनुष्य उत्पन्न होता है । बालक की आदिगुरु उसकी माता ही होती है । पिता के वीर्य की एक बूंद ही निमित्त मात्र होती है, बाकी बालक के समस्त अंग-प्रत्यंग माता के रक्त से बनते हैं । उस रक्त में जैसी स्वस्थता, प्रतिभा, विचारधारा, अनुभूति होगी, उसी के अनुसार बालक का शरीर, मस्तिष्क और स्वभाव बनेगा । नारियां यदि अस्वस्थ, अशिक्षित, अविकसित, पराधीन, कूपमंडूक और दीन-हीन रहेंगी तो उनके द्वारा उत्पन्न बालक भी इन्हीं दोषों से युक्त होंगे । ऊसर खेत में अच्छी फसल उत्पन्न नहीं हो सकती । यदि मनुष्य जाति उन्नति चाहती है तो पहले नारी को शारीरिक, बौद्धिक, सामाजिक, आर्थिक सभी दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण और सुविकसित बनाना होगा, तभी मनुष्यों में सबलता, सक्षमता, सद्बुद्धि, सद्गुण और महानता के संस्कारों का उदय हो सकता है । नारी को पिछड़ा हुआ रखना अपने पैरों में आप कुल्हाड़ी मारना है । मनुष्य समाज दो भागों में बँटा हुआ है- (१) नर (२) नारी । आजकल नर की उन्नति, सुविधा और सुरक्षा के लिए तो प्रयत्न किया जाता है, परंतु नारी हर क्षेत्र में पिछड़ी है, फलस्वरूप हमारा आधा राष्ट्र, आधा समाज, आधा परिवार, आधा जीवन पिछड़ा हुआ रह जाता है । जिस रथ का एक पहिया बड़ा और दूसरा छोटा हो, वह ठीक ढंग से नहीं

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