मिलेंगे वह अवश्य मिलेंगे (Kahani)

August 1990

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

सोलह से बीस जून 1991 की तिथियों में विदाई सम्मेलन आयोजन चल रहा था। प्रायः हजारों लोग आए हुए थे। उस दिन ग्यारह से एक बजे रात्रि तक तेज बारिश होती रही। किसी को कुछ परेशानी तो नहीं हुई पर पंडाल अवश्य भीग कर गिर गया। सुबह विदाई प्रवचन था। सबसे मुलाकात भी करनी थी। यह सब कैसे सम्भव हो?

सुनकर उन्होंने एक स्वयं सेवक को बुलाकर कहा-तुम सभी से जाकर कह दो कि सब अपने-अपने स्थान पर अपना काम करते रहें। मैं स्वयं आकर मिलूँगा। आप!इस तरह स्वयं सेवक पूरी बात कहता कि वह बोले, क्यों? मैं बहुत बड़ा आदमी हूँ और वह सचमुच स्नेह शीलता हृदय से सबसे मिले। लगा जैसे अयोध्यावासियों से विदा लेते हुए राम सबसे मिल रहे हों। ऐसी निरभिमानता और प्रेम भरा हृदय और कहाँ मिलेगा? अभी भी ऐसा लग रहा है,जैसे वह कह रहे हों “मैं स्वयं आकर सबसे मिलूँगा। “मिलेंगे वह अवश्य मिलेंगे। “


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118