प्रातःकाल सूर्योदय समय के आस-पास इन आसनों को करने के लिये खड़े होइये। यदि अधिक सर्दी-गर्मी या हवा हो तो हल्का कपड़ा शरीर पर पहिने रहिये अन्यथा लँगोट या नेकर के अतिरिक्त सब कपड़े उतार दीजिये, खुली हवा में स्वच्छ खुली खिड़कियों में कमरे में कमर सीधी रखकर खड़े होइये।
मुख पूर्व की ओर कर लीजिए। नेत्र बन्द करके हाथ जोड़कर भगवान सूर्यनारायण का ध्यान कीजिये और भावना कीजिये कि सूर्य की तेजस्वी आरोग्यमयी किरणें आपके शरीर में चारों ओर से प्रवेश कर रही हैं। अब निम्न प्रकार आरम्भ कीजिये-
१- पैरों को सीधा रखिये। कमर पर नीचे की ओर झुकिए, दोनों हाथों को जमीन पर लगाइए। मस्तक घुटनों से लगे, यह 'पाद-हस्तासन' है। इससे टखनों का, टाँग के नीचे के भागों का, जंघा का, पुटठों का, पसलियों का, कंधों के पृष्ठ भाग तथा बाँहों के नीचे के- भाग का व्यायाम होता है।
२- सिर को घुटनों से हटाकर लम्बी साँस लीजिये। पहले दाहिने पैर को पीछे ले जाइये और पंजे को लगाइये। बाँए पैर को आगे की ओर मुड़ा रखिये। दोनों हथेलियाँ जमीन से लगी रहें। निगाह सामने और सिर कुछ ऊँचा रहे। इससे जाँघों के दोनों भागों का तथा बाँंये पेडू का व्यायाम होता है, इसे एक पादप्रसारणासन कहते है।
३- बाँऐ पैर को पीछे ले जाइये। उसे दाहिने पैर से सटाकर रखिये। कमर को ऊँचा उठा दीजिये। सिर और सीना कुछ नीचे झुक जायेगा।
यह द्विपादप्रसारणासन है। इससे हथेलियों की सब नसों का भुजाओं का, पैरों की उँगलियों और पिण्डलियों का व्यायाम होता है।
४- दोनों पाँवों के घुटने, दोनों हाथ, छाती तथा मस्तक इन सब अंगों को सीधा रखकर भूमि में स्पर्श कराइये। शरीर तना रहे, कहीं लेटने की तरह निश्चेष्ट न हो जाइये। पेट जमीन को न छुए।
इसे ''अष्टांग प्रणिपातासन'' कहते हैं। इससे बाँहों, पसलियों, पेट, गर्दन, कन्धे तथा भुजदण्डों का व्यायाम होता है।
५- हाथों को सीधा खड़ा कर दीजिए। सीना ऊपर उठाइये। कमर को जमीन की ओर झुकाइये, सिर ऊँचा कर दीजिये, आकाश को देखिये। घुटने जमीन पर न टिकने पावें। पंजे और हाथों पर शरीर सीधा रहे। कमर जितनी मुड़ सके मोडि़ये, ताकि धड़ ऊपर को अधिक उठ सके।
६- हाथ पैर के पूरे तलुए जमीन से स्पर्श कराइये घुटने और कोहनियों के टखने झुकने न पावें। कमर को जितना हो सके ऊपर उठा दीजिये। ठोड़ी कण्ठमूल में लगी रहे, सिर नीचे रखिए।
यह 'मयूरासन' है। इससे गर्दन, पीठ, कमर, कूल्हे, पिण्डली, पैर तथा भुजदण्डों की कसरत होती है।
७- यहाँ से अब पहली की हुई क्रियाओं पर वापिस जाया जायेगा। दाहिने पैर को पीछे ले जाइये पूर्वोक्त नं० २ के अनुसार एक 'पादप्रसारणासन' कीजिए।
८- पूर्वोक्त नं० १ की तरह 'पादहस्तासन' कीजिए।
९- सीधे खड़े हो जाइये। दोनों हाथों को आकाश की ओर ले जाकर हाथ जोड़िये। सीने को जितना पीछे ले जा सकें ले जाइये। हाथ जितने पीछे जा सकें ठीक है, पर मुड़ने न पावें। यह 'उर्ध्वनमस्कारासन' है इससे फेफड़ों और हृदय का अच्छा व्यायाम होता है।
१०- अब उसी आरम्भिक स्थिति पर आ जाइये, सीधे खड़े होकर हाथ जोड़िए और भगवान सूर्यनारायण का ध्यान कीजिये।
यह एक सूर्य नमस्कार हुआ। आरम्भ पाँच से करके सुविधानुसार थोड़ी-थोड़ी संख्या धीरे-धीरे बढ़ाते जाना चाहिये। व्यायाम काल में मुँह बन्द रखना चाहिए। साँस नाक से ही लेनी चाहिए।
सूर्य नमस्कार के सभी आसनों में फुर्ती और शीघ्रता अधिक लाभदायी है। प्रयत्न यह करना चाहिए कि एक सैकण्ड में एक आसन हो जाय अर्थात् दस सेकण्ड में एक पूरा नमस्कार संपन्न किया जा सके। अभ्यास आरम्भ करते समय आसन एक दम तो उतने कम समय में नहीं किये जा सकते उनमें कुछ देरी भी हो सकती है पर पीछे जैसे-जैसे अभ्यास बनता जाय एक मिनट में कम से कम छ: नमस्कार कर लेने की आदत तो बना ही लेनी चाहिए। पादहस्तासन के सम्बन्ध में नये अभ्यासियों के लिए ज्ञातव्य है कि सामान्यत: पहली ही बार में पांवों को सीधे रखते हुए हथेलियों के जमीन पर टिकाना सम्भव नहीं होता। इसकी चिंता नहीं करनी चाहिए, शुरू में न टिके तो न सही पर घुटनों को किसी भी दशा में मुड़ने न देना चाहिए। उसी स्थिति में घुटनों को रखते हुए हथेलियाँ जमीन पर टिकाने का अभ्यास करना चाहिए।
सूर्य नमस्कार के लिए पाँच नम्बर से आरम्भ कर १८० आसनों तक बढ़ाये जा सकते हैं। इतने नमस्कार तीस मिनट में आसानी से अभ्यास होने के बाद पूरे हो सकते हैं प्रातःकाल शौचादि से निवृत होकर स्नान करने से आधा घण्टा पूर्व अथवा स्नान के बाद किया जाय। कहना नहीं होगा इसके लिए प्रातःकाल से अच्छा समय और क्या हो सकता है। स्थान की दृष्टि से कोई ऐसी जगह चुने जहाँ एकान्त हो और खुली जगह हो। प्रभाव के कारण शारीरिक शक्ति होने के साथ-साथ मानसिक तथा आत्मिक बल भी बढ़ता है। आसनों का लाभ स्थूल और सूक्ष्म दोनों शरीरों को मिलता है।