गायत्री की पंचकोशी साधना एवं उपलब्धियां

आसनों के प्रकार

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आसनों के प्रकार- आसन अनेक हैं, उनमें से ८४ प्रधान हैं। उन सबकी विधि-व्यवस्था और उपयोगिता वर्णन करने का यहाँ अवसर नहीं है। सर्वांग पूर्ण आसन विद्या की शिक्षा कहीं नहीं दी जा सकती। यहाँ तो हमें गायत्री की योग साधना करने के इच्छुकों को ऐसे सुलभ आसन बताना पर्याप्त होगा जो साधारणत: उसके सभी मर्म स्थलों की सुरक्षा में सहायक हों।

आठ आसन ऐसे है, जो सभी मर्मो पर अच्छा प्रभाव डालते हैं। उनमें से जो चार या अधिक अपने लिये सुविधाजनक हों उन्हें भोजन से पूर्व कर लेना चाहिए। इनकी उपयोगिता एवं सरलता अन्य आसनों से अधिक है। उपासना के पश्चात् ही करना चाहिये, जिससे रक्त की गति तीव्र हो जाने से उत्पन्न हुई चित्त की चञ्चलता ध्यान में बाधक न हो।

(१) सर्वांगासन- आसन पर चित्त लेट जाइये और शरीर को बिल्कुल सीधा कर दीजिये। हाथों को जमीन से ऐसा मिला रखिये कि हथेलियाँ जमीन से चिपकी रहें। अब घुटने सीधे कड़े करके दोनों पैर मिले हुए ऊपर को उठाइये और पैरों को ले जाकर सिर के पीछे जमीन से लगाइये। गैर मुड़ने न पावें, बल्कि सीधे तने हुए रहे। हाथ चाहे जमीन पर रखिये, चाहे सहारे के लिये कमर सें लगा दीजिये। ठोड़ी कण्ठ के सहारे से चिपकी रहनी चाहिए।

(२) बद्ध-पद्मासन- पालती मार कर आसन पर बैठिये। फिर पीठ के पीछे से दाहिना हाथ ले जाकर दाहिने पैर का अँगूठा पकड़िये। पीठ को तान दीजिये और दृष्टि नासिका के अग्र भाग पर जमाइये। ठोड़ी को कण्ठ के मूल मे गढ़ाये रखिये। बहुतों के हाथ शुरू में ही पीठ पीछे घूमकर अँगूठा नहीं पकड़ सकते, इसका कारण उनकी इन नसों का शुद्ध और पूरे फैलाव में न होना है। इसलिये जब तक दोनों पैरों के अँगूठे पकड़े न जा सकें तब तक एक ही पैर का अँगूठा पकड़ कर अभ्यास बढ़ाना चाहिए।

(३) पाद-हस्तासन- सीधे खड़े हो जाइये। फिर धीरे-धीरे हाथों को नीचे ले जाकर हाथ से पैरों के दोनों अँगूठों को पकडि़ये। पैर आपस में मिले और बिल्कुल सीधे रहें, घुटने-मुड़ने न पावें इसके बाद सिर दोनों हाथों के बीच से भीतर की ओर ले जाकर नाक सीधा घुटनों से मिलाइये। दाहिने हाथ से बाँये हाथ से दाहिने पैर का अँगूठा पकड़ करके भी यह किया जाता है। इस आसन को करते समय पेट को भीतर की ओर खूब जोर से खींचना चाहिये।

(४) उत्काटसन- सीधे खड़े हो जाइये। दोनों पैर, घुटने, एडी़ और पंजे आपस में मिले रहने चाहिऐ। दोनों हाथ कमर पर रहें पेट को कुछ भीतर की तरफ खींचिये और घुटनों को मोड़ते हुए शरीर सीधा रखते हुए उसे धीरे-धीरे पीछे की ओर झुकाइये। इस प्रकार बिल्कुल उस तरह हो जाइये जैसे कुर्सी पर बैठते हैं। जब कमर झुकाकर धुटनों के सामने हो जाय तो उसी दशा में स्थिर हो जाना चाहिये।

इसका अभ्यास हो जाने पर एड़ियों को भी जमीन से उठा दीजिए और केवल पंजों के बल स्थिर होइये। उसका भी अभ्यास हो जाये तो घुटनों को खोलिए और उन्हें काफी फैला दीजिये। ध्यान रहे घुटनों को इस प्रकार रखिये कि दोनों हाथों की उँगलियाँ घुटनों के बाहर जमीन को छूती रहें।

(५) पश्चिमोत्तान आसन- पैरों को लम्बा फैला दीजिये। दोनों पैर मिले रहे। घुटने मुड़े न हो बिल्कुल सीधे रहें। टाँगें जमीन से लगी रहें। इसके बाद टाँगों को झुकाकर दोनों हाथों से पैरों के दोनों अँगूठी को पकडि़ये। ध्यान रहे कि पैर जमीन से जरा भी न उठने पावे। पैरों के अँगूठे पकड़ कर सिर दोनों घुटनों के बीच में करके यह प्रयत्न करना चाहिए कि सिर घुटनों पर या उनके भी आगे रखा जा सके।

यदि बन सके तो हाथ की कोहनियों को जमीन से छुआना चाहिये। शुरू में पैर फैलाकर और घुटने सीधे रखकर कमर आगे झुकाकर अँगूठे पकड़ने का प्रयत्न करना चाहिए और धीरे-धीरे पकड़ने लग जाने पर सिर घुटनों पर रखने का प्रयत्न करना चाहिए।

(६) सर्पासन- पेट के बल आसन पर लेट जाइये। फिर दोनों हाथों के पंजे जमीन पर टेक कर हाथ खड़े कर दीजिये। पंजे नाभि के पास रहें। शरीर पूरी तरह जमीन से चिपटा हो मूल घुटने यहाँ तक कि पैर के पंजों की पीठ तक जमीन से पूरी तरह चिपकी हो। अब क्रमश: सिर, गर्दन, गला, छाती, और पेट को धीरे- धीरे जमीन से उठाते जाइये और जितना तान सकें तान दीजिये। दृष्टि सामने रहे। शरीर साँप के फन की तरह तना खड़ा रहे, नाभि के पास शरीर जमीन से उठा रहना चाहिए।

(७) धनुरासन- आसन पर लेट जाइये। फिर दोनों पैरों को घुटनों से मोड़कर पीछे की तरफ ले जाइये और हाथ भी पीछे ले जाकर दोनों पैरों को पकड़ लीजिये। अब धीरे-धीरे सिर और छाती को ऊपर उठायें, साथ ही हाथों को भी ऊपर की ओर खींचते हुए पैरों को ऊपर की ओर तानिये। आगे-पीछे शरीर इतना उठा दीजिये कि केवल पेट और पेडू जमीन से लगे रह जायें। शरीर का बाकी तमाम हिस्सा उठ जाय और शरीर खिंचकर धनुष के आकार का हो जाय। पैर, सिर और छाती के तनाव में टेढ़ापन आ जाय, दृष्टि सामने रहे और सीना निकलता हुआ मालूम हो।

(८) मयूरासन- घुटनों के सहारे आसन पर बैठ जाइये और फिर दोनों हाथ जमीन पर साधारण अन्तर से ऐसे रखिये कि पंजे पीछे भीतर की ओर रहें। अब दोनों पैरों को पीछे ले जाकर पंजों के बल होइये और हाथों की दोनों कोहनियों नाभि के दोनों तरफ लगा कर छाती और सिर को आगे दबाते हुए पैरों को जमीन से ऊपर का प्रयत्न कीजिए |      जब पैर जमीन से उठ कर कोहनियों के समानान्तर आ जायें तो सिर और छाती को भी सीधा कर दीजिये। सारा शरीर हाथों की कोहनियों पर सीधा आकर तुल जाना चाहिए।

यह आठ आसन ऐसे है, जो अधिक कष्टसाध्य न होते हुए भी मर्मो और सन्धियों पर प्रभाव डालने वाले हैं। शास्त्रों में इनकी विशेष प्रशंसा है।

इन सबके द्वारा जो लाभ होते हैं, उसका सम्मिलित लाभ सूर्य नमस्कार से होता है। यह एक ही आसन कई आसनों के मिश्रण से बना है। इसका परस्पर ऐसा क्रमवत् तारातम्य है कि अलग-अलग आसनों की अपेक्षा यह एक ही आसन अधिक लाभप्रद सिद्ध होता है।

हम गायत्री साधकों को बहुधा सूर्य-नमस्कार करने की ही सलाह देते हैं। हमारे अनुभव में सूर्य नमस्कार के लाभ अधिक महत्त्वपूर्ण रहे हैं, किन्तु जो कर सकते हों वे उपरोक्त आठ आसनों को भी करें। बड़े लाभदायक हैं।
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