गायत्री की पंचकोशी साधना एवं उपलब्धियां

प्रमाणित तो होता है, सूक्ष्म शरीर का अस्तित्व

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मनुष्य के एक नहीं तीन शरीर होते हैं- स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीर। दृश्यमान स्थूल शरीर ऊपर का होता है। इसके भीतर 'सूक्ष्म शरीर' है जो अदृश्य प्रवृत्तियों और शक्तियों के साथ जुड़ा रहता है। तीसरा अन्तराल का गहरा स्वर वह है जिसे 'कारण शरीर' कहते हैं। इसका सम्बन्ध परब्रह्म और उसकी सत्ता से है। इसके लिए योग साधना एवं तपश्चर्या की एक एक करके सभी सीढ़ियाँ पार करनी पड़ती हैं। स्थूल से आगे सूक्ष्म और सूक्ष्म से आगे बढ़कर कारण शरीर में प्रवेश करना पड़ता है, तब कहीं योगशास्त्रों में वर्णित ऋद्धि सिद्धियों के दर्शन होते हैं। प्राचीनकाल का समूचा इतिहास इन्हीं आध्यात्मिक उपलब्धियों से भरा पड़ा है जिसे ऋषियों, तत्वदर्शियों योगियों और सन्तों का इतिहास कहा जा सकता है, वे अपने संकल्प बल से या सूक्ष्म शरीर से परकाया प्रवेश से लेकर सुदूर ग्रह नक्षत्रों तक की यात्रा पलक झपकते ही कर लेते थे।

सूक्ष्म शरीर की सत्ता और सामर्थ्य स्थूल की काया की तुलना में असंख्य गुना अधिक है। अध्यात्म क्षेत्र में इसके पग-पग पर प्रमाण उपलब्ध हैं। आध्यात्मिक जगत की प्रसिद्ध घटना है कि मुण्डन मिश्र के जगत् गुरु आद्धशंकराचार्य से शास्त्रार्थ में पराजित हो जाने के बाद उनकी धर्म पत्नी विदुषी भारती ने मोर्चा सम्भाला। उसने शंकराचार्य से 'कामविद्या' पर ऐसे जटिल प्रश्न पूछे जो इन जैसे ब्रह्मचारी सन्यासी की कल्पना से भी परे थे। किन्तु वे योगी थे उन्हें मुण्डन मिश्र जैसे महान पण्डित की सेवाओं की अपेक्षा थी, सो उन्होंने महिष्मती नरेश के मृतक शरीर में प्रवेश किया और कामशास्त्र का ज्ञान प्राप्त किया। ''तत्पश्चात् वापस अपने शरीर में आकर उन्होंने भारती के प्रश्नों का उतर दिया। परकाया प्रवेश की यह घटना पिण्ड की सामर्थ्य के उस सूक्ष्म चेतन पक्ष का परिचय देती है, जिसे रहस्यमय विभूतियों से सम्पन्न माना गया है।

सूक्ष्म शरीर द्वारा परकाया प्रवेश की एक दूसरी इतिहास प्रसिद्ध घटना महर्षि उपवर्ष के शिष्य देवदत्त की है जिन्होंने पाटलिपुत्र के राजा महापद्यनन्द के मृत शरीर में प्रवेश तो पा लिया था, पर फिर बाहर निकल नहीं सके थे।

महर्षि उपवर्ष के तीन शिष्य थे प्रथम वरुरुचि या कात्यायन जो पीछे सम्राट चन्द्रगुप्त के महामंत्री बने थे। इन्होंने पाणिनि के व्याकरण के सूत्रों की टीका की थी। दूसरे थे 'व्याडी' जिन्होंने एक विशाल व्याकरण ग्रंथ लिखा था और तीसरे थे देवदत्त जो योग विद्या में निष्णात् थे और परकाया प्रवेश तक की विद्या जानते थे। गुरु दक्षिणा की एक लाख स्वर्ण मुद्राएं प्राप्त करने के लालच में इन्होंने तुरन्त मृत्यु को प्राप्त महापद्मानन्द के शरीर को माध्यम बनाया और दोनों साथियों पर अपने शरीर की रक्षा भार सौंपकर उसमें सूक्ष्म शरीर से जा घुसे। सारे राज्य में छाई दुख की लहर एकाएक खुशी में बदल गई। चारों ओर उत्सव मनाए जाने लगे। कुशाग्र बुद्धि महामंत्री शकटार ने जब पुनर्जीवित महापद्यनन्द के गुण, कर्म, स्वभाव व्यवहार एवं पाण्डित्य में परिवर्तन पाया तो उन्हें वस्तु स्थिति समझते देर न लगी कि यह सारा खेल योग विद्या के ज्ञाता देवदत्त का है। उन्होंने निश्चय किया कि जैसे भी हो देवदत्त के पूर्ववर्ती शरीर को ढूँढ़ कर शवदाह करा दिया जाय ताकि महापद्यनन्द को इस रूप में ही जीवित रखा जा सके। यह वह समय था जब सिकन्दर सम्राट पुरु को परास्त कर झेलम तक आ पहुँचा था। अगली लड़ाई उसकी पाटलिपुत्र से ही होने वाली थी। ऐसी स्थिति में अपने सिपाहियों का मनोबल बढ़ाए रखना आवश्यक था। अतएव शकटार ने अपने विश्वासपात्र सैनिकों को भेजकर व्याडी के विरोध के बावजूद भी देवदत्त के शरीर का अग्नि संस्कार करा दिया। देवदत्त को जब इस बात का पता चला तो माथा पीटते रह गए। बाद की कथा तो सब जानते ही हैं।

विश्व-विख्यात चित्रकार गोया की आत्मा अमेरिका की एक विधवा हैनरोट के शरीर में प्रविष्ट हो गई थी। वह घटना अमेरिका में प्रसिद्ध है। नए शरीर में गोया ने 'ग्वालन '' नामक सुन्दर कलाकृति का निर्माण किया। विधवा हैनरेट ने अपने जीवनकाल में कभी कोई चित्र नहीं बनाया था। अमेरिकी विशेषज्ञों को विधवा के व्यवहार में गोया की आत्मचेतना झाँकती दिखाई देती थी। वे इसे परकाया प्रवेश की घटना मानते थे।

गायत्री की उच्चस्तरीय योग साधना सूक्ष्मता का विज्ञान है। यह परमसत्ता से सम्बन्ध जोड़ने आत्मानुभूति कराने का सुनिश्चित साधन है। यह राह भले ही कठिनाइयों, की आत्म नियन्त्रण, आत्म सुधार की हो, पर एक वैज्ञानिक पद्धति जिसके परिणाम सुनिश्चित होते हैं। उस कठिन मार्ग पर चलने वाली आस्था को उक्त चमत्कारी सिद्धियाँ नि:सन्देह परिपुष्ट करती हैं। मानवी काया की सूक्ष्म संरचना ही कुछ ऐसी है कि अन्तराल में प्रसुप्त उस बीज भण्डार को विकसित किया जा सके तो वह उसे अनन्त गुना सामर्थ्यवान बना देती है। स्थूल से सूक्ष्म और सूक्ष्म से कारण शरीर की सत्ता इसी स्तर की है। विज्ञान जगत के अनुसन्धानकर्ताओं ने भी अब भारतीय दर्शन के इस तथ्य की पुष्टि कर दी है और कहा है कि मनुष्य की 'ईथरिक बॉडी' अर्थात् सूक्ष्म शरीर की सामर्थ्य स्थूल की तुलना में कई गुना अधिक है। वह शरीर के अन्दर और उसके बाहर भी कार्य करता रह सकता है। अत्यन्त अल्पसमय में दूरवर्ती स्थानों की यात्रा कर सकता है और जरूरतमन्दों की सहायता कर सकता है।

आक्सफोर्ड स्थित 'साइकोफिजिकल रिसर्च सेण्टर' के मूर्धन्य परामनोविज्ञानियों ने ''एस्ट्रल ट्रैवल'' अर्थात् सूक्ष्म शरीर की यात्रा पर गहन अध्ययन एवं अनुसंधान किया है। संस्थान के प्रमुख अनुसंधान अधिकारी डा० चार्ल्स एम० क्रीरी का कहना है कि जन सामान्य में से लगभग दस प्रतिशत व्यक्तियों को अपने जीवन में सूक्ष्म शरीर से दूसरे स्थानों की यात्रा के अनुभव होते हैं। इनमें से अधिकांश घटनाएं दुर्घटना या शल्य क्रिया के समय घटित होती हैं। उनके अनुसार इस तरह के अनुभव प्राय: शान्त एवं विश्रान्तिपूर्ण मनःस्थिति में होते हैं। गहन निद्रा में भी स्थूल शरीर से बाहर निकल कर सूक्ष्म शरीर की यात्रा की घटनाएं प्रकाश में आती रहती हैं।

विश्व प्रख्यात लेखक अर्नेस्ट हैमिंग्वे 'ने अपनी कृति "फेअरवैल टू आर्म्स" में ऐसे अनेकों रहस्यमय संस्मरणों का वर्णन किया है जिनमें व्यक्तियों ने अपने स्थूल शरीर से सूक्ष्म शरीर को अलग कर स्वयं की शल्य क्रिया होते या दुर्घटना में शरीर को अशक्त पड़े देखा है। इसी तरह सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक रेमण्ड मूडी ने इस तरह के कितने ही उदाहरण ढूँढ़ निकाले हैं जिनमें रोगियों ने अपनी मृत्यु को बहुत पास से देखा है कि किस तरह कष्ट कर परिस्थितियों में भौतिक शरीर से सूक्ष्म शरीर अलग होकर उन सारे दृश्यों को देखता रहा जिसमें उसे स्वस्थ करने के चिकित्सकों के प्रयत्न भी सम्मिलित थे। इस संदर्भ में तान्त्रिक विशेषज्ञों का कहना है कि सामान्य अवस्था में स्थूल शरीर एवं सूक्ष्म शरीर दोनों सम्पूर्ण ऐक्य की स्थिति में रहते हैं, किन्तु कई बार बहुत सी ऐसी परिस्थितियाँ भी आती हैं जब दोनों शरीर एक दूसरे से अलग हो जाते हैं। तब सूक्ष्म शरीर के लिए कहीं भी गमन कर सकना सम्भव हो जाता है। इतने पर भी वह भौतिक शरीर से एक सूक्ष्म सूत्र द्वारा सम्बन्ध बनाए रखता है। मृत्यु हो जाने पर यह सम्पर्क सूत्र समाप्त हो जाता है और सूक्ष्म शरीर पूरी तरह स्वतन्त्र हो जाता है।

यह एक तथ्य है कि सांसारिक कष्ट कठिनाइयाँ स्थूल शरीर के साथ ही जुड़ी रहती हैं, सूक्ष्म शरीर को इस प्रकार की कोई अधिव्याधि नहीं व्यापती। "ट्वेन्टी फिफ्थमैन'' नामक पुस्तक में ऐड मोरेल ने एक ऐसे ही व्यक्ति की घटना प्रकाशित की है जिसे जेल के भीतर भीषण यन्त्रणाऐं सहनी पड़ती थी। अभ्यास द्वारा उसने अपने सूक्ष्म शरीर को स्थूल काया से अलग करने की विद्या सीख ली थी और यन्त्रणा के उन क्षणों में सूक्ष्मशरीर से जेल के बाहर विचरण करने चला जाया करता था।

पोलैण्ड का एक प्रतिभाशाली इंजीनियर अपनी अतीन्द्रिय क्षमता के लिए विख्यात था। अपने एक चिकित्सक मित्र के परामर्श पर उसने सूक्ष्म शरीर से सुदूर प्रान्तों की यात्राऐं की। स्थूल शरीर से सूक्ष्म शरीर के अलग हो जाने पर परीक्षणकर्ता वैज्ञानिकों ने पाया कि उस समय उसके भौतिक शरीर में जीवन नाम का कोई लक्षण विद्यमान नहीं होता था। हृदय की धड़कन, नाड़ी गति, श्वास प्रश्वास आदि बंद हो जाते थे। अन्यान्य वैज्ञानिक परीक्षणों ने भी इस तथ्य की पुष्टि की है। कैलीफोर्निया यूनिवर्सिटी के ख्याति प्राप्त मनोविज्ञानी डॉ० चार्ल्स टी० स्टार्ट ने वैज्ञानिक उपकरणों के माध्यम से शारीरिक क्रियाकलापों की मोनीटरिंग करने पर पाया कि स्थूल काया से सूक्ष्म सत्ता के निकल जाने पर समस्त कायिक गतिविधियाँ ठप्प पड़ जाती हैं और जैसे ही सूक्ष्म शरीर पुन: अपनी पंच भौतिक काया में लौट आता है वे फिर सक्रिय हो उठती हैं। उनके इस अनुसंधान की प्रामाणिकता को अमेरिकन सोसाइटी फार साइकिकल रिसर्च ने भी स्वीकृति प्रदान की है।

अभ्यास द्वारा भौतिक शरीर से सूक्ष्म शरीर को अलग करने के अतिरिक्त भी कितनी ही बार ऐसी घटनाएं घटित होती हैं। जो सूक्ष्म शरीर की सत्ता में परिचय कराती हैं जिन्हें चिकित्सालयों के रिकार्ड में देखा जा सकता है। घटना फॉकलैण्ड की है जहाँ पिछले दिनों ब्रिटेन और अर्जेण्टीना के बीच युद्ध हुआ था। एक सैनिक अचेतावस्था में अस्पताल में भर्ती किया गया था। गहन उपचार के बाद जब मूर्च्छा जगी तो उसने डाक्टरों को बताया कि अमुक गाँव में अमुक परिवार में उसका मृत शरीर पड़ा है जिसको तुरन्त दफना दिया जाय। वस्तुतः उसने अपने पोते के शरीर में प्रवेश पा लिया था। जाँचकर्ताओं को उसने बताया कि उस परिवार का वह एक मात्र पुरुष सदस्य था जिसका जीवित रहना आवश्यक था। उसका प्राणान्त हो जाने पर इस शरीर में मुझे सूक्ष्म शरीर से प्रवेश करना पड़ा। इसी तरह की न्यूयार्क के लेनोक्स हिल हॉस्पिटल के चिकित्सा विज्ञानी डॉ० रसल मैक रॉबर्ट ने एक पादरी का वर्णन किया है जिसने अपने सूक्ष्म शरीर द्वारा यात्रा करके चिकित्सकों को यह सोचने के लिए विवश कर दिया था कि भौतिक शरीर के अन्दर कोई सूक्ष्म सत्ता भी विद्यमान है जिसकी सामर्थ्य उसकी तुलना में असंख्य गुनी अधिक है।

मूर्धन्य परामनोविज्ञानी सिल्वान मुल्डून का कहना है कि वस्तुतः सूक्ष्मशरीर ब्रह्माण्डीय ऊर्जा का साधनीकृत रूप मात्र है। योग साधना एवं तपश्चर्या से ब्रह्माण्डीय चेतन ऊर्जा सूक्ष्म शरीर में जैसे जैसे साधन होती जाती है वह सशक्त एवं परिपुष्ट बनता जाता है। उसकी क्षमता भौतिक काया से कई गुनी बढ़ी चढ़ी होती है जिसके लिए समय, स्थान, दूरी आदि जैसे कारक कोई अर्थ नहीं रखते उनके अनुसार सूक्ष्म शरीर से यात्रा करने के पश्चात जितनी ताजगी और स्फूर्ति की अनुभूति होती है, उतनी स्थूल शरीर से कभी भी सम्भव नही हो पाती। इसे उन्होंने मन की यात्रा कहा है जो प्रबल संकल्प बल के सहारे सम्पन्न होती है।

वस्तुतः मनुष्य मात्र पंचभौतिक शरीर हा नहीं वरन् उसकी एक प्रचण्ड समर्थ्ययुक्त सूक्ष्म सत्ता भी होती है जिसे सूक्ष्म शरीर कहते हैं, आत्मा का वाहन भी। इसी पर सवार होकर आत्मा लोक−परलोक की यात्राऐं करता तथा मरणोत्तर जीवन के पश्चात् पुराने कलेवर को छोड़कर नए कलेवर में प्रवेश करता ह। तपस्वी एवं सिद्ध योगीजन अपने इसी शरीर से स्वल्प समय में दूरवर्ती दुर्गम क्षेत्रों की यात्राएं करते एवं जरूरतमन्दों की सहायता करते देखे सुने जाते हैं। सूक्ष्म शरीर से अन्य शरीरों में प्रवेश करने की कथा गाथाओं का भी उल्लेख मिलता है। जिन कार्यो को मनुष्य स्थूल काया से सम्पादित नही कर पाता, वह दिव्य दर्शन, दूरश्रवण, दूर सम्प्रेषण, दूरगमन जैसे कठिन कार्य सूक्ष्म शरीर को विकसित कर लेने पर सहज सम्भव हो जाते हैं।

भारत का प्राचीन इतिहास आध्यात्मिक उपलब्धियों से भरा पूरा है। इसे आध्यात्मिक उपलब्धियों की शृंखला कहें तो आध्यात्मिक साहित्य और दर्शन को तत्वदर्शी ऋषि-मनीषियों, योगी और सन्तों का इतिहास कहना पड़ेगा। आध्यात्मिक जगत की ऐसी कितनी ही घटनाऐं हैं जो इस तथ्य पर प्रकाश डालती हैं कि स्थूल शरीर से परे जीवात्मा का वाहन 'सूक्ष्म शरीर' जिसे (एस्ट्रल बॉडी, एटलर बॉडी) के नाम से भी जाना जाता है, विलक्षण क्षमता सम्पन्न एक सुनिश्चित सत्ता है। इसे अदृश्य प्रवृत्तियों और शक्तियों का केन्द्र भी कहा जाता है। इसको विकसित कर लेने पर लोक लोकान्तरों की यात्राऐं कीं जा सकती हैं। अपनी सूक्ष्म सत्ता को दूसरों की काया में प्रवेश कराकर उनसे मनचाही दिशा में कार्य कराया जा सकता है। इस सन्दर्भ में आद्यशंकराचार्य की वह घटना प्रसिद्ध है जिसमें महान विद्वान मण्डन मिश्र के पराजित होने पर उनकी पत्नी विदुषी भारती ने मोर्चा सम्भाला था और उनके छू प्रश्नों के उत्तर देने के लिए शंकराचार्य को एक मृत राजा के शरीर में परकाया प्रवेश करना पड़ा था। तत्पश्चात् अपने शरीर में वापस आकर उन्होंने भारती के प्रश्नों का उत्तर दिया और उन्हें परास्त किया। परकाया प्रवेश की यह घटना पिण्ड की सामर्थ्य के उस चेतन पक्ष का परिचय देती है जिसे रहस्यमय विभूतियों से सम्पन्न माना जाता है।

नाथ सम्प्रदाय के आदिगुरु महायोगी मत्स्येन्द्रनाथ के विषय में कहा जाता है कि सूक्ष्म शरीर से वे अपनी इच्छानुसार: गमनागमन विभिन्न लोकों में करते थे। उन्हें परकाया प्रवेश की सिद्धि प्राप्त थी। एक बार अपने शिष्य गोरखनाथ को स्थूल शरीर की सुरक्षा का भार सौंपकर मृत राजा के शरीर में उन्होंने सूक्ष्म शरीर से प्रवेश किया था। गोरखनाथ स्वयं एक महान योगी थे और अध्यात्म जगत की विभूतियों से सम्पन्न थे। महाभारत के "शान्तिपर्व" में वर्णन है कि सुलभा नामक विदुषी अपने योगबल की शक्ति से राजा जनक के शरीर में प्रविष्ट कर विद्वानों से शास्त्रार्थ करने लगी थी। उन दिनों राजा जनक का व्यवहार भी स्वाभाविक न था। 'अनुशासन पर्व' में ही कथा आती है कि एक बार इन्द्र किसी कारणवश ऋषि देवशर्मा से कुपित हो गए। उन्होंने क्रोधवश ऋषि की पत्नी से बदला लेने का निश्चय किया। देवशर्मा का शिष्य विपुल' योगसाधनाओं में निष्णात् और सिद्ध था। उसे योग दृष्टि से यह मालूम हो गया कि मायावी इन्द्र गुरुपत्नी से बदला लेने वाले हैं। विपुल ने सूक्ष्म शरीर से गुरुपत्नी के शरीर में उपस्थित होकर इन्द्र के हाथों से उन्हें बचाया।

पातंजल योगदर्शन में शरीर से आकाश गमन करने, एक ही समय में अनेकों शरीर धारण करने, अदृश्य होने, परकाया प्रवेश करने जैसी अनेकों योग विभूतियों का वर्णन है जो प्रकारान्तर से जीवात्मा की अकूत सामर्थ्य और काया से परे उसकी स्वतन्त्र सत्ता का प्रतिपादन करती हैं। सत, रज, तम से बने संसार और पंचभौतिक काया से जुड़े आकर्षणों से अत्यधिक लिप्त होने के कारण अपनी मूल सत्ता, जो समस्त शारीरिक एवं मानसिक हलचलों का केन्द्र है, का बोध नहीं हो पाता। बाह्याकर्षणों के आवरणों को चीरकर निकल सकना सम्भव हो सके तो प्रतीत होगा कि अपनी ही आत्म सत्ता में ऋद्धि सिद्धियों का ऐसा विलक्षण भण्डार छिपा पड़ा है जिसे जानकर समष्टि चेतन सत्ता से सम्बन्ध जोड़ सकना तथा विभूति सम्पन्न सामर्थ्यवान बन सकना सम्भव है। शास्त्र में इसी तथ्य का प्रतिपादन करते हुए ऋषि कहते हैं "योगी को अदृश्य जगत् दृश्यवत् दीखता है। उसे दूरदर्शन, दूरश्रवण की विभूतियाँ उपलब्धि होती हैं । ध्यान मात्र से योगी भूत, भविष्य, वर्तमान तथा प्राणियों के मनोगत भाव जान लेता है।'' अदृश्य जगत को जान लेना उसमें सूक्ष्मशरीर द्वारा प्रवेश कर सकना संभव है। विज्ञानवेत्ता भी अब इस तथ्य को स्वीकार करने लगे हैं और सूक्ष्मशरीर की विशिष्ट क्षमता को उद्धाटित करने निरत हुए हैं। अनुसन्धानकर्ताओं ने स्थूल काया से सूक्ष्म शरीर के बाहर निकलने की प्रक्रिया को 'एक्सोमेटिक स्टेट' तथा 'आउट ऑफ बॉडी एक्सपीरिएन्स (ओ० बी० ई०) अर्थात् शरीर से बाहर अतीन्द्रिय अनुभव आदि नामों से सम्बोधित किया है। पाश्चात्य योग साधकों में से डा० माल्थ कारिंगटन, हैवर्टलमान, लिण्डार्स, हुरावेल मुलडोन , ओलिवर लॉज, डा० मेस्मर डेविडनील, पाल ब्रण्टन आदि के अनुभवों और प्रयोगों में सूक्ष्मशरीर की प्रामाणिकता सिद्ध करने वाले अनेक प्रमाण उपस्थित किए गए हैं। ये मुलडोन अपने स्थूल शरीर से सूक्ष्मशरीर को पृथक् करने के कितने ही, प्रदर्शन कर चुके थे। उनने इन सबकी चर्चा अपनी पुस्तक "द प्रोजेक्शन ऑफ एस्ट्रल बॉडी" में विस्तारपूर्वक की है।

फ्रांस के प्रख्यात कथाकार गुई दि मोपासां ने अपने संस्मरण में लिखा है कि जब कभी वह लिखने, बैठते तो उनके सम्मुख एक सूक्ष्म शरीरधारी पुरुष बैठा मिलता। वह उनसे आग्रहपूर्वक वही लिखाता जो उसकी इच्छा होती। लेखन समाप्त होते ही वह अदृश्य हो जाता। कहानी पढ़ने पर प्रतीत होता कि किसी उच्चस्तरीय साहित्यकार की आत्मा ने उसमें अपने प्राण उड़ेल दिए हैं। इसी तरह के एक संस्मरण का उल्लेख करते हुए अंग्रेजी के ख्याति प्राप्त कवि बायरन ने अपने समकालीन कवि शेली के सूक्ष्मशरीर से यात्राऐं करने का वर्णन किया है। एक ही समय में उनके दो मित्र स्थानों में उपस्थित रहने की सामर्थ्य का वर्णन करते हुए वे लिखते हैं कि जब एक बार वह किसी जंगल से गुजर रहे थे तो उनकी भेंट शेली से हो गई और वार्तालाप करने से पूर्व ही वे अदृश्य हो गए। खोजबीन करने पर पाया गया कि उस वक्त शेली कहीं दूसरी जगह अपने मित्रों से बातचीत करने में मशगूल थे।

पुराणों में उल्लेख है कि प्राचीन काल के योगी तपस्वी ऋषिकल्प आत्माऐं न केवल सूक्ष्मशरीर से गमनागमन करने में समर्थ थीं वरन् इच्छानुसार रूप धारण करने और जब चाहे अदृश्य होने और पुनः प्रकट हो जाने की विभूतियों से भी सम्पन्न थी। वीसवीं सदी में भी इस तरह के कितने ही उदाहरण विद्यमान हैं जो मानव में अन्तःनिहित प्रचण्ड सूक्ष्म शक्ति सामर्थ्य को प्रकट करते हैं। ब्राजील निवासी राजास केमिलो नामक एक ईसाई साधक का उदाहरण कुछ इसी प्रकार का है। केमिलो की ईश्वर पर दृढ़ आस्था थी और उसने अपने जीवन को बहुत ही पवित्र एवं प्रखर बना लिया था। फलतः अर्न्तनिहित शक्तियाँ विकसित हो गई थी। इच्छानुसार वह अदृश्य या प्रकट हो सकता था। उसकी इस विलक्षण क्षमता की पुष्टि जाँचकर्ता वैज्ञानिकों एवं पत्रकारों ने भी की थी।

इसी तरह अलबानिया के काउण्ट एडुवर्डो नामक व्यक्ति को सूक्ष्म शरीर से यात्रा करने, अदृश्य होने आदि की सामर्थ्य प्राप्त थी। मंगोलिया के बौद्ध भिक्षु ध्यांग ने भी कठिन अभ्यास के द्वारा इस तरह की क्षमताऐं विकसित कर ली थीं। सब के सामने वह अचानक प्रकट हो जाता और फिर अदृश्य होकर सबको अचम्भे में डाल देता। इस तरह के कितने ही प्रदर्शन उसने मूर्धन्य वैज्ञानिकों, विद्वानों एवं पत्रकारों के समक्ष प्रस्तुत किए थे। आस्ट्रेलिया के सुप्रसिद्ध पत्रकार डेविड नील ने जब आग से उसकी विलक्षणता का कारण पूछा तो उत्तर मिला ''सूक्ष्म शरीर से यात्रा करना अदृश्य होना आदि साधक की अपनी इच्छा शक्ति पर निर्भर करता है। अपनी समस्त मानसिक एवं आध्यात्मिक शक्तियों को केन्द्रित करके कोई भी व्यक्ति इस तरह की क्षमताऐं विकसित कर सकता है ''योगी एवं तपस्वी स्तर के भारतीय साधकों की एक महान परम्परा रही है जो इस तथ्य को उद्घाटित करती है कि मानव जीवन सृष्टा का वह अनुपम उपहार है जिसका यदि सदुपयोग बन पड़े तो हर मनुष्य दिव्य विभूतियों का स्वामी बन सकता है। पवित्रता एवं प्रखरता द्वारा पात्रता अर्जित कर हर साधक योगसाधना के माध्यम से भौतिक सफलताऐं एवं अध्यात्म जगत की विभूतियाँ हस्तगत कर सकता है।



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