गायत्री की पंचकोशी साधना एवं उपलब्धियां

गायत्री साधना के दो स्तर गायत्री की दैनिक साधना को नित्यकर्म को स्कूलों की प्राथमिक और अनुष्ठानों तथा पुरश्चरणों को माध्यमिक शिक्षा कहा जा सकता है। जूनियर, हाईस्कूल, मैट्रिक- हायर सेकेण्ड्रि का प्रशिक्षण माध्यमिक स्तर का समझा जाता है। इसके उपरान्त कॉलेज की विश्वविद्यालय की पढ़ाई का क्रम आरम्भ होता है। इसे उच्चस्तरीय साधना कह सकते हैं। योग और तप इस स्तर के साधनों में ही क्रियान्वित होते हैं। योग में जीव चेतना को ब्रह्म चेतना से जोड़ने के लिए स्वाध्याय, मनन से लेकर ध्यान धारणा तक के अवलम्बन अपनी मनःस्थिति के अनुरूप अपनाने पड़ते हैं। विचारणा, भावना एवं आस्था की प्रगाढ़ प्रतिष्ठापना इसी आधार पर सम्भव होती है। आत्मिक प्रगति के लिए प्रचलित अनेकानेक उपायों और विधानों में गायत्री विद्या अनुपम है। भारतीय तत्व वेत्ताओं ने, आत्म विज्ञानियों ने प्रधानतया इसी का अवलम्बन लिया है और सर्वसाधारण को इसी आधार को अपनाने का निर्देश दिया है। भारतीय धर्म के दो प्रतीक हैं। शिखा और यज्ञोपवीत। दोनों को गायत्री की ऐसी प्रतिमा कहा जा सकता है, जिसकी प्रतीक धारणा को अनिवार्य धर्म चिन्ह बताया गया है। मस्तिष्क दुर्ग के सर्वोच्च शिखर पर गायत्री रूपी विवेकशीलता की ज्ञान- ध्वजा ही शिखा के रूप में प्रतिष्ठापित की जाति रही

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