ग्वालियर क्षेत्र के एक छोटे गाँव में जन्मी पद्मा के पिता सैनिक थे। मृत्यु के उपरान्त वे कर्ज चुकाने को छोड़ गये थे। परिवार के पालन का भी भार था।
किशोर पद्मा पुरुष का वेश बनाकर किसी प्रकार सेना में भर्ती हो गई, अपने कौशल से अपने समुदाय में अच्छी खासी धाक जमाली। उसका पराक्रम और साहस देखते ही बनता था। मिलने वाले वेतन से उसने सारा कर्ज चुका दिया।
किसी प्रकार रहस्य खुल गया। पूछने पर उसने सारी बात बता भी दी। विवाह योग्य हो गई। एक वरिष्ठ सेना अधिकारी के साथ उसका विवाह भी हो गया। विवाह के बाद भी वह अपने पति के साथ सैन्य कार्यों में रुचि बनाये रहीं और उस विभाग से संबंधित रही।
क्षमता को शिथिल करके वहाँ लगे हुए तेजस् को जब अचेतन के साथ जोड़ दिया जाता है, तो उसकी वे दिव्य क्षमताएँ जाग्रत और सक्षम होना आरम्भ हो जाती हैं, जो अद्भुत, अनुपम और चमत्कारी ही कही जा सकती हैं। इस दिशा में जो जितनी सफलता प्राप्त कर लेता है, वह उतना ही समर्थ और सिद्धि पुरुष बन जाता है।
संक्षेप में यही है योग साधना का तत्वदर्शन-बौद्धिक चेतना पर नियंत्रण स्थापित करके अचेतन को दबाने से रोकना और उसे जाग्रत करना। इन प्रयोगों को यदि व्यवस्थित और वैज्ञानिक ढंग से किया जा सके तो निःसंदेह मनुष्य साधारण न रह कर असाधारण बन सकता है और वे विभूतियाँ अर्जित कर सकता है, जो उसे अतीन्द्रिय ज्ञान संपन्न बना सकती हैं।