इंग्लैण्ड की संभ्रांत महिला कुमारी स्वेड ने गृहस्थ बसाने की उपेक्षा महान प्रयोजनों के लिए जीवन अर्पित करने का संकल्प किया। वे देश हित की संकीर्णता से निकल कर विश्व नागरिक बन गई।
मिस स्वेड गाँधी जी के आश्रम में भी आई। वहीं रहकर उन्होंने आजीवन भारत की स्वतंत्रता और प्रगतिशीलता के लिए काम किया। वहाँ वे “मीरा” के नाम से प्रख्यात हुई।
आवश्यकता है सही ढंग से अध्यात्म का मर्म समझने की। ध्यान रखा जाय अध्यात्म बाजीगरी नहीं है। साधक की सम्पत्ति निर्मल अन्तःकरण है। शक्तियाँ तो बाजीगरों के पास भी होती हैं। अध्यात्म से इनका क्या लेना देना? पंचदशीकार विद्यारण्य ने अपने इसी ग्रन्थ में कहा है कि “कोई जरूरी नहीं है कि आत्मज्ञानी के पास-शाप वरदान की शक्तियाँ हों।” पंचदशीकार के इस कथन को विभिन्न महापुरुषों के जीवन में देखा जा सकता है। महात्मा गाँधी, मालवीय जी, बिनोवा, स्वामी विवेकानन्द आदि का जीवन इसका जीता-जागता उदाहरण है।
इस तथ्य पर ठीक तरह से विचार कर आध्यात्मिकता का सही तात्पर्य जानना चाहिए। आध्यात्मिक बनने का मतलब है मन-कर्म-वचन से पवित्र बनना। यदि इस दिशा में कदम बढ़ रहे हों तो समझना चाहिए कि सही दिशा में प्रयास हो रहा है। यदि ऐसा न बन पड़ रहा हो तो सही राह पर चलने के लिए प्रवृत्त हो जाना चाहिए।