बाबा राघवदास का जन्म पूना में हुआ पर उन्होंने लोकसेवा में अधिक सुविधा एवं निश्चिंतता रहने की बात सोच कर अपना प्रान्त छोड़ा और उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले को कार्य क्षेत्र बनाया।
आरंभ में उनकी रुचि भगवद्भक्ति और योगाभ्यास में थी पर वह आवेश देर तक न रहा। उनने लोक मंगल में सच्ची ईश्वर भक्ति अनुभव की और अपनी जीवनचर्या उसी दिशा में मोड़ दी।
उन्होंने गोरखपुर जिले में ढेरों पाठशालाएँ स्थापित कराई। रामायण पाठशालाएँ स्थापित कराई। रामायण के माध्यम से जन जीवन में स्वतंत्रता आन्दोलन की भावना उकसाई। कई बार जेल गये और कोढ़ियों के लिए एक सेवाश्रम बनाकर उसे सब प्रकार सफल बनाने में लगे रहे। लोग उन्हें गेरुए कपड़े न पहनने पर भी सच्चे सन्त के रूप में मानते और वैसी ही श्रद्धा रखते थे।
है कि पदार्थ विज्ञान और हमारी स्थूल बुद्धि उस तथ्य का अनावरण नहीं कर पा रहे हैं जिसके लिए प्रकृति ऐसे कौतुक रचती रहती है। सत्यान्वेषण के लिए हमें पदार्थ से अपदार्थ, भौतिक से अभौतिक, दृश्य से अदृश्य और स्थूल से सूक्ष्म की ओर उस दिशा में अग्रसर होना पड़ेगा, जिसे ऋषियों ने अध्यात्म विज्ञान के नाम से अभिहित किया है। ऐसा होने पर ही रहस्यमय लगने वाली इन स्थूल ध्वनियों का सूक्ष्म और वास्तविक कारण हम जाने सकेंगे।