जस्टिस रानाडे उच्च पद पर अवस्थित न्यायाधीश थे। उसका विवाह बचपन में ही हो गया था। पत्नी कई वर्ष छोटी थी। जब वे बड़ी हुई और ससुराल गई तो रानाडे ने उनकी शिक्षा को आगे बढ़ाने का कार्य हाथ में लिया उन्हें उच्च शिक्षा प्राप्त करने तक घरेलू झंझटों से बचाये रखा।
रानाडे ने अपनी पत्नी को सुशिक्षित बनने के उपरान्त समाजसेवा के कार्यों में लगने के लिए प्रोत्साहित किया और इस प्रकार के अवसरों को उनके लिए खोजा। रमाबाई के द्वारा समाज सेवा के इतने अधिक कार्य सम्पन्न हुए, जिनकी प्रशंसा उनके पति के पद से किसी प्रकार कम न थी।
दोनों प्रसन्न थे कि दोनों ने एक दूसरे की सच्चे अर्थों में सेवा और दाम्पत्य जीवन को सफल बनाया।
जीवन रूपी पुष्प समय और साधनों की छोटी-छोटी पंखुड़ियों से मिलकर बना है। उसकी शोभा इनके सही तरह से व्यवस्थित रहने एवं खिलने में ही है। यदि उन्हें कुचली मसली स्थिति में रहने दिया जाय या आलस्य प्रसाद के हाथों कुचल मसलकर फेंक दिया जाय तो समझना चाहिए कि ऐसी भूल चल पड़ी जिसके लिए भविष्य में पश्चाताप ही शेष रह जायेगा। ऐसी स्थिति न आने पाये इसलिए जीवन को अधिकतम उपयोगी जीने के इच्छुकों को डायरी रखनी तथा नियमित रूप से लिखनी चाहिए। साथ ही नियमित रूप से यह समीक्षा भी करनी चाहिए कि वर्तमान ढर्रे में भविष्य में क्या सुधार परिवर्तन किया जाना चाहिए?