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September 1991

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=कहानी============================

कुएँ पर रहट से पानी खींच कर खेत सींचा जाता था।

एक घुड़सवार उधर से निकला घोड़े को पानी पिलाना था। पर रहट की आवाज सुनकर घोड़ा बिदकता था सो सवार ने किसान से कहा। रहट की आवाज बंद करो ताकि घोड़ा पानी पी सके।

किसान ने रहट बन्द किया तो कुएँ से पानी निकलना भी बन्द हो गया। घोड़ा पीता क्या?

इस पर सवार ने कहा भाई मैंने तो रहट की आवाज बन्द करने को कहा था। तुमने तो पानी ही बन्द कर दिया।

किसान ने कहा रहट का आवाज करना, कुएँ से पानी निकालना दोनों साथ-साथ जुड़ें हुए हैं। आप ही घोड़े को सधाइये। लगाम पकड़ कर उसे काबू में लाइये। तभी आपका प्रयोजन पूरा होगा। अकेले मेरे प्रयत्न से ही आपकी इच्छा पूरी हो जाये, यह संभव नहीं।

स्थान नहीं बना सकता। यह तो हो सकता है कि भीतर घोर घृणा भरी हो, पर लालच या भय से आक्रांत होकर जीभ से प्रशंसा के शब्द निकलवा दिए जायँ, पर छद्म देर तक छिपा नहीं रहता। अवसर मिलते ही यथार्थता अपना स्वरूप प्रकट कर देती है। जो हेय है, वह हेय ही रहेगा। तथ्यों को देर तक झुठलाया नहीं जा सकता। भ्रष्ट चरित्र और दुष्ट आचरण वाले न यशस्वी बन सकते हैं और न प्रतिष्ठ पा सकते हैं। इतना होते हुए भी लोग इसी राह पर चलते देखे गये हैं। अनेकों का चिन्तन अभी भी यही बना हुआ है कि पाखण्डों के सहारे वे बड़प्पन पा सकते हैं और उसे देर तक स्थिर रख सकते हैं। यदि यह भ्रान्ति मिट गई होती तो लोग बड़प्पन के स्थान पर महानता पसंद करते। सीधा और सरल मार्ग चुनते, वह प्राप्त करते जिसे पाने की उनकी आन्तरिक अभिलाषा थी। ओछे आधार अपनाकर बटोरा गया बड़प्पन तिनकों से बनाये गये महल की तरह हवा के एक ही झोंके में उड़कर कहीं से कहीं जा पहुँचता है।

महानता शाश्वत है और स्थिर भी। व्यक्तित्व को आदर्शों से ओत-प्रोत करके हर किसी की दृष्टि में प्रमाणिक बना जा सकता है। प्रामाणिकता ही मानवी गरिमा है इसके लिए गुण, कर्म, स्वभाव के चिन्तन, चरित्र और व्यवहार को ऐसा बनाना पड़ता है जो उत्कृष्टता की कसौटी पर खरा सिद्ध हो सके। यही वह विभूति है जिसके आधार पर आत्मसंतोष, जन सम्मान, अजस्र सहयोग का प्रतिफल हाथों हाथ मिलता है। समझदारी तक का तकाजा एक ही है कि अपने क्रियाकृत्यों में ईमानदारी का समावेश रखा जाय। कर्तृत्वों के प्रति जिम्मेदारी निबाही जाय। प्रलोभनों और दबावों के आगे न झुकने का साहस दिखाया जाय।

व्यक्तिगत रूप से कोई धनवान, विद्वान, बलवान प्रतिभावान, कला कुशल, चतुर आदि विशेषताओं से सम्पन्न हो सकता है। दूसरों की तुलना में अपने को अधिक शक्ति सामर्थ्य का धनी सिद्ध कर सकता है, पर साथ ही यह भी निश्चित है कि इन सम्पदाओं का दुरुपयोग बन पड़ने का खतरा भी बना ही रहेगा। साथ ही ईर्ष्यालुओं के आघातों, आक्रमणों की संभावना भी बनी रहेगी। चोर और आक्रमणकारी, कुचक्री भी अपनी घात लगाते रहेंगे। चापलूसों, चाटुकारों द्वारा प्रशंसा का लालच दिखाकर हितैषी बनने और दल-दल में फँसा देने की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता। ऐसी दशा में आशंकाएँ, अशुभ संभावनाएँ बनी ही रहेंगी। उनके कारण चित्त पर उद्विग्नता भी चढ़ी ही रहेगी।

बड़प्पन के साथ जुड़! हुए खतरों को समझना चाहिए और अशान्त मनःस्थिति में जो दुर्गति होती है उसका भी ध्यान रखना चाहिए। इस प्रकार का कोई जोखिम महानता का मार्ग अपनाने में नहीं है। उसकी गरिमा अन्तःकरण को प्रसन्न और उल्लसित रखती है, साथ ही दूसरों का जो उपकार बन पड़ता है उसकी प्रतिक्रिया भी मंगलमय ही होती है। चरित्रनिष्ठ और लोकमंगल में संलग्नता इन दो आधारों का अपनाकर कोई भी व्यक्ति अपनी उत्कृष्टता के आधार पर सर्वसाधारण के सन्मुख ऐसे आदर्श प्रस्तुत कर सकता है जिनसे प्रेरणा पाकर उन्हें भी श्रेष्ठ सज्जन बनने का अवसर मिल सके।

आवश्यक नहीं कि महानता का मार्ग अपनाने के लिए धनवान या विद्वान बनना आवश्यक हो। इसके लिए चतुरता या समर्थता भी आवश्यक नहीं। सज्जनता की रीति-नीति अपनाना हर किसी के लिए हर परिस्थिति में संभव है। अन्तःकरण सद्भावना से उदारता से ओत-प्रोत हो तो संपर्क क्षेत्र में सेवा सहायता करने, उदारता बरतने के अवसर अनायास ही मिलते रहते हैं। श्रम, समय लगाकर भी सत्प्रवृत्ति सम्वर्धन के लिए कुछ न कुछ करते रह सकना सुगम संभव हो सकता है। सज्जनता अपनाकर दूसरों के सामने यह तथ्य प्रस्तुत किया जा सकता है कि


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