स्मरण शक्ति की कुँजी अपने हाथ में

September 1991

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भुलक्कड़ लोगों को प्रायः यह शिकायत रहती है कि उनकी स्मरण शक्ति कमजोर है, इसी कारण कोई भी बात देर तक याद नहीं रह पाती पर कई बार विकसित मस्तिष्क में भी यह कमी नजर आती है, तब अचम्भा होता है कि आखिर यह विरोधाभास कैसा? इतनी विकसित बुद्धि और विस्मृति -दोनों साथ-साथ कैसे रह सकती हैं। निश्चय ही कारण कुछ और है। यह तथ्य तब और अधिक स्पष्ट हो जाता है, जब भुलक्कड़ विद्वानों, वैज्ञानिकों और मनीषियों का प्रसंग सामने आता है।

प्रसिद्ध विद्वान और व्याकरण के मर्मज्ञ पंचानन मिश्र के बारे में कहा जाता है कि वे तो अपनी पत्नी और उनसे हुए विवाह को भी भूल गये थे। उन्हें यह तक याद नहीं रहा कि कभी उनका विवाह भी हुआ था। हुआ यों कि एक बार वे प्रसिद्ध व्याकरण ग्रन्थ “भामती” की रचना में संलग्न थे। कई महीनों से वे इस कार्य में लगे हुए थे। प्रतिदिन सुबह से शाम तक वे इसी में व्यस्त रहते। भोजन रख दिया जाता तो वे भोजन कर लेते नहीं तो अनवरत लगे रहे, तो पत्नी भामती आयी और भोजन कर लेने का निवेदन किया। उन्होंने आश्चर्य में पड़ते हुए उत्तर देने के स्थान पर प्रश्न किया “आप कौन हैं?” जब पत्नी ने जवाब दिया कि वह उनकी पत्नी है, तो पुनः दूसरा सवाल हुआ “हम दोनों की शादी कब हुई थी?” आज से चार वर्ष पूर्व। इस उत्तर के बाद जब उन्हें यह ज्ञात हुआ कि सचमुच ही वे उनकी पत्नी हैं और तब से सतत् निष्काम सेवा कर रही हैं, उनने अपने ग्रन्थ का नामकरण अपनी पत्नी के नाम पर ही कर दिया। यह भूल का परिमार्जन व सेवा का पुरस्कार था।

प्रसिद्ध कवि निराला के बारे में भी एक ऐसा ही प्रसंग है। एक दिन वे लीडर प्रेस से रायल्टी के पैसे लेकर महादेवी वर्मा के पास चले जा रहे थे कि सड़क के किनारे सर्दी से काँपती एक बुढ़िया दिखाई पड़ी, जो याचक भाव से उन्हीं को देख रही थी। उन्हें उस पर दया आ गई। उन्होंने न सिर्फ रायल्टी के सारे पैसे उसे दे दिये, वरन् ठंड निवारण के लिए अपना कोट भी निकाल कर उसके ऊपर रख दिया और महादेवी के घर चल दिये, किन्तु चार दिन बाद वे यही भूल गये कि उनके कोट का क्या हुआ? उसे ढूँढ़ते हुए महादेवी के आवास पर पहुँचे, जहाँ उन्हें ज्ञात हुआ कि उन्होंने तो अपना कोट दान कर दिया है।

विद्वान दार्शनिक हक्सले यदा-कदा यह बिल्कुल ही भूल जाते थे कि घर से किस प्रयोजन के लिए वह निकले थे और जाना कहाँ था। एक बार वे अपने शहर से दूर किसी अन्य शहर के एक समारोह में आमंत्रित थे। ट्रेन वहाँ देर से पहुँची। तब तक स्टेशन पर आये अगवानी करने वाले लोग जा चुके थे। दार्शनिक महोदय बाहर खड़े एक ताँगे में सवार हुए और चल पड़े। कुछ दूर जाने के बाद ताँगे वाले ने जब उनसे पूछा कि जाना कहाँ है? तो वे असमंजस में पड़ गये। बहुत स्मरण किया पर याद नहीं आया कि जाना कहाँ है? अन्ततः वे उसी ताँगे से स्टेशन लौट आये और वापसी वाली गाड़ी से घर चले गये।

इसी प्रकार प्रख्यात अमरीकी विद्वान ड्वाइट मारो के बारे में विख्यात है कि एक बार वे रेल में सफर कर रहे थे। गाड़ी के कुछ मील आगे बढ़ने पर टिकट चेकर आया और उनसे टिकट दिखाने का आग्रह किया। मारो महाशय ने अपने कोट-पैंट की जेबें टटोली, सारा सामान उलट-पुलट डाला पर टिकट नहीं मिला। टिकट चेकर उन्हें भली भाँति जानता था। उसने कहा- “परेशान न हों मुझे पूरा विश्वास है कि आप बिना टिकट यात्रा नहीं कर सकते। नहीं मिला तो कोई बात नहीं पर यदि मिल जाय, तो हमें दिखा दें।” उन्होंने कहा-”शायद वह टिकट अब न मिले अतः आप मुझे दूसरा टिकट बना दें, क्योंकि गेट पार करने के लिए टिकट जरूरी है। यहाँ आप छोड़ देंगे, तो बिना टिकट वहाँ पकड़ा जाऊँगा।” अन्ततः दूसरे टिकट पर ही उनने यात्रा की और गन्तव्य तक पहुँचे। आश्चर्य है कि इस प्रकार की यह पहली घटना नहीं थी। उनके साथ अक्सर ऐसा हो जाता था। कई बार तो वे अपना बहुमूल्य सामान ही भूल जाते थे। इसी कारण से बाद में यात्रा के दौरा अपने नौकर को भी साथ रखने लगे। टिकट और सामान उसी के जिम्मे रहता।

प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइंस्टीन भी इस विस्मृति- दोष से नहीं बच सके। एक बार वे टहलने के लिए निकले। जब लौटे, तो इतने थक चुके थे कि कुछ आराम की आवश्यकता महसूस की, पर वे इस समय किसी चिन्तन में इतने लीन थे कि यही याद नहीं रहा कि वाकिंग स्टिक को बिस्तर पर रख कर उसकी जगह स्वयं कोने में खड़े हो गये हैं। बाद में गलती का बोध तब हुआ, जब उनकी पत्नी ने उन्हें यह एहसास कराया।

दूसरी ओर छोटी आयु के बालक और साधारण मस्तिष्क वाले व्यक्ति भी कई बार ऐसी विलक्षण स्मृति का प्रदर्शन करने लगते हैं, जिसके कारण उन्हें असाधारण स्मृति का धनी समझा जाने लगता है।

स्काटलैण्ड के जमील मोगल नामक बालक ने पाँच वर्ष की उम्र से कुरान कंठाग्र करना प्रारंभ किया और तीन साल के अन्दर-अन्दर पूरी कुरान कंठस्थ कर ली। अन्य क्षेत्रों में बालक की प्रतिभा औसत स्तर की है।

इसी प्रकार चीन का 26 वर्षीय टेलीफोन आपरेटर गोयानलिंग अब तक 15 हजार टेलीफोन नम्बर याद कर चुका है और अब वह अपने लक्ष्य अठारह हजार तक पहुँचने के निकट है। गोयानलिंग भी साधारण प्रतिभा वाला युवक है। बौद्धिक क्षेत्र में उसने कोई अन्य असाधारण क्षमता प्रदर्शित की हो, ऐसा अब तक देखने में नहीं आया है।

इन दोनों प्रकार के उदाहरणों से स्पष्ट हो जाता है कि किसी क्षेत्र में तीव्र बौद्धिक क्षमता का प्रदर्शन करना और किसी में फिसड्डी साबित होना, बहुत कुछ व्यक्ति की रुचि, एकाग्रता और मनोयोग पर निर्भर करता है। इस प्रकार तीक्ष्ण बौद्धिक और कल्पना शक्ति को दर्शाने वाले साहित्यकारों और वैज्ञानिकों के बारे में यह कहना कि उनकी याददाश्त कमजोर थी, उचित न होगा। सच्चाई तो यह है कि अपने गंभीर चिन्तन के आगे छोटी-मोटी बातों और घटनाओं पर वे समुचित ध्यान न दे पायें यही इसका मूल कारण हो सकता है, क्योंकि जिस मस्तिष्क ने अपनी अद्भुत सृजन-क्षमता के आधार पर नयी-नयी खोज और रचनायें की, उसकी स्मरण शक्ति इतनी कमजोर होगी, यह बात गले नहीं उतरती। दूसरी ओर जीवन भर सामान्य बने रहने वाले लोग अपनी एकाग्रता और रुचि के आधार पर विस्मयकारी स्मृति का परिचय देते हुए देखे जाते हैं। यह इस बात का प्रतीक है कि स्मृति के संदर्भ में सभी का स्तर समान होता है।

कोई याद तीव्र स्मरण शक्ति प्रदर्शित करती है, तो यह उसकी एकाग्रता का प्रतिफल है और कोई यदि इसके मन्द होने की शिकायत करता है, तो यह कहा जा सकता है कि उसने घटना के प्रति विशेष रुचि नहीं दिखाई क्योंकि मस्तिष्क की एक विशेष प्रवृत्ति तथा प्रकृति है, वह देखी हुई सारी घटनाओं अथवा बातों को याद नहीं रखता। जो घटना उसे महत्वपूर्ण एवं आवश्यक जान पड़ती है, उसे रख कर शेष को छोड़ देता है। अब प्रश्न है कि यह चयन प्रणाली किस प्रकार काम करती है? मस्तिष्क महत्वपूर्ण व गौण विषयों का निर्णय कैसे करता है? इस संदर्भ में विशेषज्ञों का कहना है कि जहाँ ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है, वहाँ


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