मानवता को उबारा (Kahani)

September 1991

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

संत गाडगे महाराष्ट्र के महान संतों में गिने जाते हैं। वे पढ़े लिखे तो नाम मात्र के थे पर भक्ति भावना के साथ समाज सुधार और चरित्र निर्माण की आवश्यकता की अविच्छिन्न रूप से जोड़ने की दृष्टि से उनकी मौलिकता बहुत लोकप्रिय बनी और जन साधारण द्वारा अपनाई गई।

गाडगे ने संगीत कीर्तन मंडली गठित करके प्रचार कार्य प्रारंभ किया। पीछे उनके शिष्य सहयोगियों द्वारा वैसी ही सैकड़ों कीर्तन मण्डलियाँ बनीं और उनका कार्य क्षेत्र समूचे महाराष्ट्र में व्यापक हुआ। जो धन उन्हें मिलता उससे वे जगह-जगह पाठशालाएँ स्थापित करते। इस प्रकार उनके द्वारा धर्म जाग्रति के अतिरिक्त शिक्षा प्रसार भी खूब हुआ। जाति भेद और छुआ-छूत मिटाने में इन मण्डलियों ने भारी सफलता प्राप्त की।

संत गाडगे को सन्त ज्ञानेश्वर और तुकाराम की परम्परा का माना जाता है और लोक सेवी सन्तजनों में उनकी गणना है।

साबुन से होती है, मन की आन्तरिक दुर्बलता और बाहरी कुप्रभावों के वशीभूत मनुष्य स्वभावतः वैसे आचरण करता है जैसे कि वह कीट पतंगों और पशु पक्षियों की पिछड़ी योनियों करता रहा है। उस पतनोन्मुख प्रवाह को विवेक और समय के द्वारा-मर्यादाओं और वर्जनाओं के अनुबंध द्वारा रोका जाता है। इस नियंत्रण और परिष्कृत परिवर्तन के लिए काम करने वाली प्रक्रिया का नाम ही अध्यात्म है। यह विद्या यदि आज पुनः वैसी ही उपयोगी बनायी जा सके तो ही मानवता को उबारा जा सकता है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles