आदर्श स्तर (Kahani)

September 1991

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दक्षिण भारत के तलाम पैठ इलाके के एक कुलीन सम्पन्न और विद्वान परिवार में गोपाल कृष्ण जन्मे। पिता माता उन्हें सुखी गृहस्थ के रूप में देखना चाहते थे पर उनने अपने जीवन को लोक मंगल के लिए समर्पित करने का निश्चय किया।

पिता-माता को वे भीष्म, लक्ष्मण, हनुमान, नचिकेता, ज्ञानेश्वर आदि की कथाएँ सुना कर उन्हें परमार्थरत जीवन बिताने की आज्ञा माँगते थे। पर वह मोहग्रस्त अभिभावकों से मिल नहीं सकी। तो भी उन्होंने अविवाहित रहने का निश्चय तो घोषित कर ही दिया।

पिता माता के न रहने पर उनने अपनी पैतृक सम्पदा ग्राम पंचायत के सुपुर्द करके विद्यालय चला दिया। स्वयं परिव्राजक होकर निकल पड़े। समाज सुधार और चरित्र निर्माण की दृष्टि से उनने कार्य क्षेत्र को उन दिनों आदर्श स्तर का बनाकर दिखा दिया।

समय किया गया थोड़ा सा साधनात्मक पराक्रम ही अपरिमित फल देने वाला सिद्ध होता है। ऐसा ही कुछ समय युग संधि की इस वेला में हम सबके समक्ष उपस्थिति है। नौ वर्ष का एक अति विशिष्ट समय अब हमारे सामने है जिसका एक एक दिन नवरात्रि के एक दिन, एक पल के समान है। इस समय विशेष को यदि समझते हुए इसका लाभ उठाने का प्रयास किया जाय, आलस्य प्रमोद की दीर्घसूत्रता में न गँवाकर इसका विशिष्ट प्रयोजन हेतु उपभोग किया जाय तो न केवल अपना वरन् अपने साथ-साथ सारे जगत का कल्याण निश्चित है। तीर्थ स्नान तो कभी भी किया जा सकता है पर विशिष्ट पर्वों पर किये गए स्नान का विशिष्ट पुण्य है। सोमवार तो वर्ष में बावन बार आते हैं किन्तु श्रावण मास में पड़ने वाले सोमवारों का पर्व की दृष्टि से अपना विशिष्ट महत्व है। आध्यात्मिक पुरुषार्थ हर ऋतु में किए जा सकते हैं किन्तु चैत्र व आश्विनी की नवरात्रियों में कुछ ऋतु प्रभाव परोक्षजगत में इतना तीव्र होता है कि तनिक सा उपासनात्मक प्रयास ही अत्यन्त प्रभावोत्पादक परिणाम सामने लाने वाला सिद्ध होता है। उपासना दिन-रात कभी भी की जा सकती है, पर प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त्त में किये गए उपचार विशेष शक्ति प्रदान करते हैं।

अवसर की पहचानने की समझदारी जब विकसित हो जाए तो इसे परम पिता की सबसे बड़ी अनुकम्पा माननी चाहिए। महानता को प्राप्त करने के लिए आत्मसाधना और आत्म विकास की तपश्चर्या अपनी जगह अनिवार्य है किन्तु श्रुति यह भी संकेत करती है कि महानता से संपर्क साधने और लाभान्वित होने का अवसर भी न चूका जाय। यों ऐसे अवसर बिरले ही होते हैं व कभी- कभी ही किसी भाग्यशाली को मिलते हैं किन्तु कदाचित वैसा सुयोग बैठ जाय तो ऐसा अप्रत्याशित लाभ मिलता है जिसे लाटरी खुलने और देखते-देखते मालदार बन जाने के समतुल्य कहा जा सकता है।

हम इतिहास के उदाहरण देखें तो यह बात स्पष्ट हो जाती है। रामचरित्र से जुड़ जाने पर कितने ही नगण्य-सामान्य स्तर के व्यक्ति असामान्य श्रेय के अधिकारी बन गए। बंदरों की उछल कूद एक सुयोग के कारण ऐतिहासिक श्रमशीलता में बदल गई एवं उनका थोड़ा सा पुरुषार्थ “रामकाज” के लिए लग गया तो वे अभिनंदनीय बन गए। नल-नील समुद्र पर पुल बनाकर व हनुमान सीता की खोज हेतु समुद्र की छलाँग लगाकर अमर बन गए। जब विशिष्ट दैवी प्रयोजनों के निमित्त साहस जुटाया जाता है तो दैवी सहायता भी असाधारण मात्रा में उपलब्ध होने लगती है।

कृष्ण चरित्र पर दृष्टिपात करने पर भी ऐसे ही तथ्य उभर कर आते हैं। ग्वालबालों की लीला कोई विशिष्ट महत्वपूर्ण कृत्य नहीं है पर कृष्ण के साथ उठी उनकी लाठी जब गोवर्धन को उठाकर इन्द्र के अभियान को मिटाती है तो यही कृत्य पुराण उपाख्यानों में बार बार दुहराया सराहा जाने लगता है। अर्जुन व भीम का वनवास में पेट भरने के लिए बहरूपिया बनकर किसी तरह दिन गुजारने पड़े थे। द्रौपदी को इन्हीं सब बलवानों ने निर्वस्त्र होते देखा था व अपनी समर्थता का वे कुछ उपयोग कर नहीं पाए। किन्तु यह पाण्डवों की बुद्धिमत्ता थी कि उनने कृष्ण का वरण किया व महाभारत में अर्जुन का सारथी स्वयं भगवान को बनाया। यह चयन की विशिष्टता एवं अवसर विशेष ही उन्हें बड़भागी बना सका। जीवन संग्राम में ही नहीं, हमेशा हमेशा के लिए उन्हें श्रेय का अधिकारी बना गया।

महानता आग के समान है, सौभाग्य के समान है। जिस किसी को महानता से जुड़ने का अवसर


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