अपाला ऋषि कन्या थी। संयोग वश उसे श्वेत कुष्ठ के दाग हो गये। विवाह योग्य हुई तो उसे स्वीकार करने के लिए कोई वर तैयार न हुआ।
अपाला ने ज्ञान को अपना पति बनाया। गंभीरतापूर्वक अध्ययन में लग गई। कालान्तर में वह अपने समय की असाधारण विदुषी बन गई। उसने वेदों की कितनी ही ऋचाओं की रचयिता होने का गौरव प्राप्त किया।
उसने अनुभव किया कि श्वेत कुष्ठ उसे भगवान से उपहार के रूप में मिला। यदि यह कुरूपता उसे न मिली होती तो साधारण गृहस्थ की तरह मरते खपते जीवन बिताती और यह सुयोग न प्राप्त कर सकती जो अविवाहित रहने पर उसे मिला।
भी है तो उसका उपयोग गिरों को उठाने में किया जाना चाहिए। जिनके पास ठाट-बाट में उड़ाने के लिए तो है पर पीड़ितों की सहायता के लिए नहीं, उन्हें पाषाण हृदय ही कहना चाहिए। जिनका कलेजा पत्थर का है, उन्हें पुतलियों जैसा शृंगार सजाकर घूमने फिरने दिया जाय तो भी उससे क्या किसी का कुछ बनेगा?
सादगी सज्जनता की पोशाक है। सहृदयता की भी। उसको अपनाने से मनुष्य का गौरव बढ़ता है गिरता नहीं। इसके विपरीत जो अमीरी का आडम्बर प्रदर्शन करते हुए लोगों की आँखों में धुलि झोंकना चाहते हैं, वे अपनी नंगी उद्धतता का प्रदर्शन करते हैं। सादगी ही व्यक्ति को अनेक विडम्बनाओं से बचाती है। अंगीकार उसे ही करना चाहिए।