दार्शनिक च्युअंगली की धर्मपत्नी मर गई। विद्वान हुईत्से संवेदना प्रकट करने आये।
वे आश्चर्य से दंग रह गये। अपनी प्यारी पत्नी के मरने पर भी च्युअंगली बाजा बजाते हुए गीत गा रहे थे।
अवाक् हुईत्से का समाधान करते हुए च्युअंगली ने कहा “ऋतुएं बदलती रहती हैं अपनी पत्नी के परिवर्तन की शुभ बेला में मैं उसे गाना गाकर क्यों न सुनाऊँ।”
दृश्य पदार्थ और संबंधी अदृश्य बन जाएँगे इतने भर से क्या हुआ? दृश्य भोजन उदरस्थ होकर अदृश्य ऊर्जा का रूप ले लेता है, इसमें घाटा क्या रहा? संबंधियों की सद्भावना और अपनी शुभेच्छा का आदान-प्रदान जब बना ही रहने वाला है तो संबंध टूटा कहाँ? इस परिवर्तन भरे विश्व में जीवन का स्वरूप भी तो बदलना चाहिए। ज्वार-भाटे की तरह जीवन और मरण के विशाल समुद्र में हम सब प्राणी क्रीड़ा कल्लोल कर रहे हैं। इस हास्य को रुदन क्यों माना जाय?
श्मशान को देखकर घबराने की जरूरत नहीं। यह नव जीवन का उद्यान है। उसमें सोई आत्माएँ मधुर सपने सँजो रही हैं ताकि विगत की अपेक्षा आगत को अधिक समुन्नत बना सकें। डरें नहीं। मरण अस्तित्व की समाप्ति नहीं सिर्फ आवरण का बदलाव भर है। जब हमें परिवर्तन सदा से रुचिकर लगा है तब रुचिकर के आगमन पर रुदन क्यों?