हर दुर्लभ वस्तु महंगे मोल पर खरीदी जाती है जैसे श्रद्धा और सद्भावना।
कि साधक के जीवन में परिवर्तन क्या आया? उसकी मनःस्थिति में आमूलचूल परिवर्तन हुआ या नहीं।
गुरु द्वारा अपनी दिव्य शक्तियों को हस्तान्तरित करने-शक्तिपात द्वारा शिष्य की क्षमताओं को विकसित करने की घटनाओं से साधना ग्रंथों एवं इतिहास के पन्ने भरे पड़े हैं। अर्जुन, हनुमान, शिवाजी, विवेकानन्द, दयानन्द आदि के उदाहरण यह बताते हैं कि समर्थ सत्ता से, गुरु सत्ता से जुड़ने-समर्पित होने के पश्चात् उन्होंने जन प्रवाह के बहते हुए ढर्रे के जीवन से मुख मोड़ कर वह मार्ग अपनाया जो कठिनाइयों से भरा था। उनने संघर्षों का आह्वान किया तथा उनसे व्यक्तित्व को इतना परिष्कृत किया जिससे सभी लोग प्रकाश एवं प्रेरणा ले सकें। विवेकानंद में रामकृष्ण का, श्री माँ में अरविंद का व्यक्तित्व झाँकता दिखाई देता था। इनके जीवन में महत्ता अनुभूतियों की नहीं, फलश्रुतियों की-सौंपे गये उत्तरदायित्वों को पूरा करने की स्पष्ट देखी जाती है। चरित्र की उत्कृष्टता एवं व्यक्तित्व की समग्रता ही गुरु अनुग्रह की वास्तविक उपलब्धि है। यह जिस भी साधक में जितनी अधिक मात्रा में दीख पड़े, समझा जाना चाहिए गुरु शक्ति का हस्तान्तरण उतना ही अधिक उसमें हुआ है।