जैसे जैसे हम सचमुच ज्ञानवान होते जाते हैं, वैसे-वैसे उदारता बढ़ती जाती है।
धर्म में तालाब में शान्त स्थिर कमल, जिस पर जल स्वयं फिसल जाता है और रात में अपनी पंखुड़ियाँ समेट लेता है, उसकी उस अवस्था का द्योतक है जिसमें मानव के मानसिक जीवन के तीनों स्तर समन्वित होते हैं।
तीसरे प्रकार की प्रतीक मूर्तियाँ है। सी.जी. युँग ने “साइकोलॉजी एण्ड रिलीजन” में इन्हें “अज्ञात मन की दैव भाव प्रतिमा” बताया है। उसके अनुसार ये अन्य प्रकार के प्रतीकों की अपेक्षा अत्यधिक शक्तिशाली है। इसकी अनुभूति में देवत्व सम्बन्धी गुण आ जाता है। उनके अनुसार यह जन्मजात अज्ञात मन की भाव प्रतिमा बड़ी शक्तिशाली और प्रभावोत्पादक है। ईश्वर हमसे अलग नहीं है, अभ्यन्तर में है। जो अभ्यन्तर में है व्यक्ति उससे विमुख नहीं हो सकता, न ही बहिष्कृत कर सकता है। प्रतिमा के द्वारा अज्ञात मन के इस क्षेत्र तक पहुँचा जाता है। उन गुण और शक्तियों को जागृत किया जाता है यह जागरण ही प्रतिमा जागरण है। प्रतीकोपासना का उद्देश्य यही है। इसका मनोविज्ञान मूलतः यही है।